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KHAWAATEEN ME PAAE JANE WALE SHIRKIYA AAMAAL

ख़वातीन में पाए जाने वाले शिर्किया आमाल

 

मुसलमानों के एक तबक़े ने मुसलमानों के अंदर शिर्क के वजूद का इनकार किया है इस लिए मैं पहले इस बात की गवाही पेश कर देता हूँ कि मुसलमानों के अंदर भी शिर्क पाया जाता है ताकि टॉपिक की वज़ाहत हो सके।

 

क़ुरआन की बहुत सी आयत और बहुत सारी अहादीस इस बात पर दलालत करती हैं कि उम्मत-ए-मुहम्मदिया भी शिर्क करेगी।  

मिसाल के तौर पर एक आयत और एक हदीस देखते हैं:

 

क़ुरआन:

 

وَما يُؤمِنُ أَكثَرُ‌هُم بِاللَّهِ إِلّا وَهُم مُشرِ‌كونَ ۔ (سورة يوسف:106)

 

तर्जुमा: और उनमें से अक्सर लोग अल्लाह पर ईमान लाने के बावजूद भी शिर्क ही करते हैं।

 

हदीस:

 

لولا تقومُ الساعةُ حتى تَلحقَ قبائلُ من أُمتي بالمشركينَ ، وحتى تعبدَ قبائلُ من أمتي الأوثانِ ۔(صحیح ابوداؤد:4252)

 

तर्जुमा: क़यामत क़ाइम नहीं होगी जब तक मेरी उम्मत के क़बीलें मुशरिकीन से न मिल जाएं और यहाँ तक कि मेरी उम्मत के क़बीलें बुतों की इबादत न करने लगें।

 

इन दोनों नुसूस से ज़ाहिर है कि इस उम्मत में भी शिर्क का वजूद 

 

रहेगा, इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को छोटे बड़े तमाम क़िस्म के शिर्क से महफ़ूज़ रहने के लिए दुआ सिखाई है:  

 

“اللهم إني أعوذ بك أن أشرك بك و أنا أعلم ، و استغفرك لما لا أعلم”۔ (صحیح الادب المفرد:551) 

 

इस हदीस को अल्लामा अल्बानी रहिमहुल्लाह ने सहीह क़रार दिया है।

 

जब हम मुसलमान समाज का जाइज़ा लेते हैं तो पता चलता है कि जहाँ मर्दों में शिर्किया आमाल पाए जाते हैं वहीं ख़वातीन के अंदर भी शिर्क का वजूद मिलता है बल्कि बाज़ नाहिया से औरत में मर्द से ज़्यादा शिर्किया अक़वाल और अफ़आल पाए जाते हैं। इस बात को सच मानना हो तो किसी मज़ार पर चले जाएं। शिर्क का यह मंज़र मुसलमानों के ख़ास तबक़े बरेलवियों में पाया जाता है।  

मर्द की तरह औरत भी समाज का एक हिस्सा है, अगर समाज में मर्द शिर्क का इर्तिक़ाब करेगा तो उसका असर औरत समेत समाज के तमाम तबक़ो पर पड़ेगा। यही वजह है कि समाज को शिर्किया कामों ने खोखला कर दिया है।

 

औरतों में शिर्क का वजूद:

 

औरतें कमज़ोर दिल और कमज़ोर अक़्ल होने की वजह से उनमें ज़ा’ईफ़-उल-ए’तिक़ादी (अंधविश्वास) बहुत पाई जाती है। यही 

 

वजह है कि औरत की बात-बात से शिर्क की बू आती रहती है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक ज़िंदगी के तमाम मराहिल में ऐतिक़ाद का ज़ोफ़ बहुत कम ही ख़ातून से दूर हो पाता है।  

घर में अकेली हो तो जिन भूत से डर कर चिल्लाना, किसी को बीमार देखे तो बुरा फ़ाल लेना, किसी का बच्चा मर जाए तो नहूसत लेना, कोई ऐक्सीडेंट से या जल कर या लटक कर फ़ौत हो जाए तो उसकी रूह भटकती हुई तसव्वुर करना और उस रूह से डरना, इश्क़ और मुहब्बत, बीमारी और वबा, ख़ौफ़ और तरद्दुद, रंज और ग़म, यास (नाउम्मीद) और क़ुनूत तमाम हालात में इमाम ज़ामिन बांधना औरतों में आम है।  

मुस्लिम औरतों को रब पर भरोसा करना चाहिए और किसी चीज़ से बदफ़ाली नहीं लेना चाहिए, और न ही अल्लाह से ज़्यादा किसी से डरना चाहिए, और न ही अपनी ज़बान से कोई शिर्किया कलाम निकालना चाहिए।

 

औरतों में शिर्क की तमाम क़िस्में पाई जाती हैं:

 

(1) शिर्क-ए-अकबर: यह सबसे बड़ा शिर्क है, इसके इर्तिक़ाब से आदमी दीने इस्लाम से ख़ारिज हो जाता है। ख़वातीन में भी यह शिर्क पाया जाता है। जब बच्चा न हो, बीमारी की हालत हो, घरेलू परेशानियां हो वग़ैरह-वग़ैरह हालात में ख़ातून रब को छोड़कर मुर्दों से मदद मांगती है और उनसे हाजत रवाई करती है जो कि शिर्क-ए-अकबर है। अगर उसी अमल पर औरत का ख़ात्मा हो जाए तो हमेशा जहन्नम में रहेगी।  

 

अल्लाह का फ़रमान है:  

 

إِنَّهُ مَن يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدْ حَرَّمَ اللَّهُ عَلَيْهِ الْجَنَّةَ وَمَأْوَاهُ النَّارُ ۖ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَارٍ(المائدۃ : 72)

 

तर्जुमा: जो शख़्स अल्लाह के साथ शिर्क करता है, अल्लाह ने उस पर जन्नत हराम कर दी है, उसका ठिकाना जहन्नम है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं।

 

(2) शिर्क-ए-असग़र: चूंकि औरत झूठ बहुत बोलती है और अपनी झूठी क़सम पर क़सम खाती है। औरतों का बात-बात पर ग़ैरुल्लाह की क़सम खाना शिर्क-ए-असग़र के क़बील से है। इस क़सम से वह इस्लाम से ख़ारिज नहीं होती मगर तौहीद में कमी पैदा होती है।  

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फ़रमान है:  

 

مَن حلفَ بغيرِ اللَّهِ فقد كفرَ أو أشرَكَ۔(صحیح الترمذی : 1535)

 

तर्जुमा: जिसने भी ग़ैरुल्लाह की क़सम खाई, उसने या तो शिर्क किया या कुफ़्र किया।

 

(3) शिर्क-ए-ख़फ़ी: हदीस में रियाकारी को शिर्क-ए-ख़फ़ी बतलाया गया है।  

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फ़रमान है:  

 

ألَا أُخبركم بما هو أخوفُ عليكم عندي من المسيحِ الدجالِ قال قلنا بلى فقال الشركُ الخفيُّ أن يقومَ الرجلُ يُصلي فيُزيِّنُ صلاتَه لما يرى من نظرِ رجلٍ(صحیح ابن ماجۃ : 3408

)

तर्जुमा: क्या मैं तुम्हें उस चीज़ की ख़बर न दूँ जो मेरे नज़दीक 

 

मसीह दज्जाल से भी ज्यादा तुम्हारे ऊपर ख़ौफ़ खाने वाली बात है? सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह के रसूल! ज़रूर बतलाइए। आपने फ़रमाया: वो शिर्क-ए-ख़फ़ी है। एक आदमी नमाज़ को मुअय्यन करके इस लिए पढ़ता है ताकि लोग उसकी तरफ़ देखें।

औरतों के आमाल में भी दिखावा है, वो ख़ुद को अच्छा बनाने के लिए रियाकारी से काम लेती है। ऐसी औरत को अपने आमाल में इख़लास पैदा करना चाहिए और बंदों की तारीफ़ हासिल करने या उनकी नज़र में अच्छा बनने के लिए नुमाइश से बचना चाहिए।  

अल्लाह से दुआ है कि तमाम मुसलमान मर्द और औरत को हर क़िस्म के शिर्क से बचा और तौहीद के रास्ते पर चलाए।  

आमीन।

 

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