KIYA FARZ NAMAAZ KE SAJDE ME APNI ZABAAN ME DU’A KAR SAKTE HAI?
क्या फ़र्ज़ नमाज़ के सजदे में अपनी ज़बान में दुआ कर सकते हैं?
तहरीर: शैख़ मक़बूल अहमद सलफ़ी हाफ़िज़ाहुल्लाह
हिंदी मुतर्जिम: हसन फ़ुज़ैल
इस सवाल का जवाब यह है कि कुछ उलमा ने कहा है कि नमाज़ पढ़ने वाला फ़र्ज़ नमाज़ के सजदे में अपनी ज़बान में दुआ कर सकता है, मगर मैं उन उलमा की राय क़वी समझता हूँ जो यह कहते हैं कि फ़र्ज़ नमाज़ के सजदे में अपनी ज़बान में दुआ नहीं कर सकते हैं। हालांकि, मैं भी मानता हूँ कि सुन्नत और नफ़्ल नमाज़ के सजदों में आप अपनी ज़बान में दुआ कर सकते हैं।
इस सिलसिले में सहीह बुख़ारी 1200 की हदीस पर ग़ौर फ़रमाएं। ज़ैद बिन अरक़म रज़ि० से मरवी है कि हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में नमाज़ पढ़ने में बातें कर लिया करते थे। कोई भी अपने क़रीब के नमाज़ी से अपनी ज़रूरत बयान कर देता। फिर आयत “حافظوا علی الصلوات…….” नाज़िल हुई और हमें नमाज़ में ख़ामोश रहने का हुक्म हुआ।
अपनी ज़बान में दुआ करना यह इंसानी कलाम और इंसानी गुफ़्तुगू (बात-चीत) है जो पहले नमाज़ में जाइज़ थी फिर बाद में
मना कर दी गई इस के लिए इस हदीस की रोशनी में बेहतर और अफ़ज़ल यही मा’लूम होता है के आप फ़र्ज़ नमाज़ के सजदो में अगर तस्बीहात के बाद दुआ करना चाहे तो मसनूनी दुआ करे यानि वो दुआ जो क़ुरआन में वारिद हो या अहादीस में वारिद हो।
जहां तक सुन्नत और नफ़िल का मामला है तो इसमें उम्मीद-ए-वस्ल है। चुनांचे सही मुस्लिम 772 कि एक हदीस पर ग़ौर फ़रमाए हुज़ैफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है वो फ़रमाते हैं एक रात में ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ नमाज पढ़ी आप ने सूरह बक़रा शुरू फ़रमाई मेने दिल में कहा 100 आयत पर एक रुकू फ़रमाएंगे, लेकिन आप ने जारी रखा फिर मैंने ख़्याल किया के आप एक रकात में पूरी सूरत पड़ेगे लेकिन आप ने जारी रखा फिर मैंने ख़्याल किया के आप सूरह मुकम्मल कर के रुकू फ़रमाएंगे लेकिन आप ने सुरह आले इमरान शुरू कर दी और इसे भी मुकम्मल किया, आप ठहरे ठहर कर पढ़ रहे थे आप जब किसी ऐसी आयत से गुज़रते थे जिसकी मैं तस्बीह हो तो अल्लाह की पाकी बयान फ़रमाते और जब किसी सवाल वाली आयत से गुज़रते तो अल्लाह से सवाल करते और जब पनाह वाली आयत से गुज़रते तो अल्लाह की पनाह तालाब करते।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की यह नमाज़ नफ़िल थी और नफ़िल नमाज में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ुरआनी आयत पढ़ते हुए कहीं अल्लाह की पाकी ब्यान की,
कहीं अल्लाह से सवाल किया, कहीं अल्लाह से पनाह मांगी।
इससे यह समझा जा सकता है कि नफ़िल नमाज़ में कुछ वुसअत है इस वजह से नफ़िल नमाज़ के सजदो में आप अपनी ज़बान में दुआ कर सकते हैं।
आख़िर बात यह है कि दुआ के लिए कोई ज़रूरी नहीं है कि आप सजदे में ही दुआ करें, आप कभी भी दुआ कर सकते हैं और दुआ के मुख़्तलिफ़ अफ़ज़ल औक़ात हैं, इन सब औक़ात में दुआ का एहतिमाम करे
वल्लाहु आलम बिस्सावाब