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NAMAAZE AWWAABEEN KE FAZAAIL AUR AHKAAM.

नमाज़-ए-अव्वाबीन के फ़ज़ाइल और अहकाम

 

 

अवाम (पब्लिक) मे अव्वाबीन (तौबा की नमाज़) की नमाज़ का बहुत चर्चा है मगर बेशतर उसकी असल हक़ीक़त से ना वाक़िफ़ है और अहनाफ़ के यहाँ आमतौर पर लोग यह नमाज़ मग़रिब के बाद 6 रकात अदा करते हैं जब कि अव्वाबीन की नमाज़ का वक़्त यह नहीं है। अवाम और अहनाफ़ की इसी ग़लती पर मुतनब्बेह करने के लिए मैंने यह मज़मून लिखा है।

अव्वाबीन का मतलब:

अव्वाबीन मुबालग़ा का सीग़ा है जिसकी मानी क़सरत से अल्लाह की तरफ़ लौटने वाला, ज़िक्र और तस्बीह करने वाला, गुनाहों पर शर्मिंदा होने वाला और तौबा करने वाला है। अव्वाबीन इसी अव्वाब (तौबा और इस्तग़फ़ार) की जम (जमाअत) है।

क़ुरआन में अव्वाब और अव्वाबीन दोनों इस्तेमाल हुआ है, अल्लाह का फ़रमान है:

 

هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِكُلِّ أَوَّابٍ حَفِيظٍ (ق:32)

 

तर्जुमा: यह है जिस का तुमसे वादा किया जाता था हर उस शख़्स के लिए जो अल्लाह की तरफ़ लौटने वाला और पाबंदी करने वाला हो।

 

अल्लाह का फ़रमान है:

 

رَّبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَا فِي نُفُوسِكُمْ ۚ إِن تَكُونُوا صَالِحِينَ فَإِنَّهُ كَانَ  لِلْأَوَّابِينَ غَفُورًا (الاسراء:25)

 

तर्जुमा: जो कुछ तुम्हारे दिलों में है उसे तुम्हारा रब बख़ूबी जानता है, अगर तुम नेक हो तो वह तो लौटने वालों की बख़्शिश करने वाला है।

 

एक दूसरी जगह अल्लाह का फ़रमान है:

 

وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ مِنَّا فَضْلًا ۖ يَا جِبَالُ أَوِّبِي مَعَهُ وَالطَّيْرَ ۖ وَأَلَنَّا لَهُ الْحَدِيدَ (سبا:10)

 

तर्जुमा: और हमने दाऊद पर अपना फ़ज़ल किया, ऐ पहाड़ों! इसके साथ रग़बत के साथ तस्बीह पढ़ा करो और परिंदों को भी (यही हुक्म है) और हमने उसके लिए लोहा नर्म कर दिया।

 

नमाज़े अव्वाबीन और चाशत की नमाज़ दोनों एक ही है:

 

नमाज़े अव्वाबीन और चाशत की नमाज़ दोनों एक ही है, इनमें कोई फ़र्क़ नहीं है। इससे मुताल्लिक़ कई हदीस और इमामों और मुहद्दिसीन के मुतद्दिद अक़्वाल हैं मगर एक हदीस ही इसके सबूत के लिए काफ़ी है और क़ौल-ए-मुहम्मद ﷺ के सामने दुनिया के सारे अक़्वाल और लोगों की सारी बातें मर्दूद हैं।

 

अब्दुल्लाह बिन हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है:

 

أوصاني خليلي بثلاثٍ لستُ بتاركهنَّ ، أن لا أنامَ إلا على وترٍ ، و أن لا أدَعَ ركعتي الضُّحى ، فإنها صلاةُ الأوّابينَ ، و صيامِ ثلاثةِ أيامٍ من كلِّ شهرٍ۔(صحيح الترغيب:664، صحيح ابن خزيمة:1223)

 

तर्जुमा: मुझे मेरे ख़लील ﷺ ने 3 चीज़ों की वसीयत की कि मैं इन्हें कभी नहीं छोड़ूंगा। बिना वित्र पढ़े न सोऊं, चाशत की दो रकअत न छोड़ूं क्योंकि यही अव्वाबीन की नमाज़ है और हर महीने 3 रोज़ न छोड़ूं।

☆ इस हदीस को शैख़ अल्बानी ने सही अत-तर्ग़ीब और सही इब्न खुज़ैमा में सही क़रार दिया है।

इस हदीस में नबी ﷺ ने वाज़ेह तौर पर बता दिया कि चाशत की नमाज़ ही अव्वाबीन की नमाज़ है।

यहाँ एक अहम बात याद रखें कि फ़ज्र के बाद से ज़ह्र के पहले तक 3 नमाज़ों का ज़िक्र है। (1) इशराक़ की नमाज़ (2) चाशत की नमाज़ (3) अव्वाबीन की नमाज़।

इन तीनों नमाज़ों में चाशत और अव्वाबीन की नमाज़ दोनों एक ही है और इशराक़ की नमाज़ वक़्त पर अदा करने से चाशत की नमाज़ है। यानी इशराक़ और चाशत की नमाज़ भी दोनों एक ही है। हमने वक़्त पर अदा कर लिया तो इशराक़ कहलाया और ज़ह्र की नमाज़ से पहले बीच में या आख़िर वक़्त में अदा की तो चाशत की नमाज़ कहलाएगी। गोया तुलू-ए-आफ़ताब के कुछ मिनट बाद इशराक़ का वक़्त है और यही वक़्त चाशत का भी है मगर उसे ज़ह्र से पहले किसी भी वक़्त अदा कर सकते हैं। ज़ह्र से पहले वस्त या आखिर वक़्त में अदा की गई नमाज़ को चाशत कहेंगे फिर इशराक़ नहीं कहेंगे।

 

नमाज़े अव्वाबीन के फ़ज़ाइल:

 

चूंकि चाशत और अव्वाबीन की नमाज़ दोनों एक ही है, इस वजह से चाशत की फ़ज़ीलत से मुताल्लिक़ जो भी हदीसें वारिद हैं, वो सभी अव्वाबीन की भी फ़ज़ीलत में हैं।

 

चंद एक हदीसें मुलाहिज़ा फ़रमाएं:

 

(1) पहली हदीस: 

 

عَنْ أَبِي ذَرٍّ عَنْ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنَّهُ قَالَ يُصْبِحُ عَلَى كُلِّ سُلَامَى مِنْ أَحَدِكُمْ صَدَقَةٌ فَكُلُّ تَسْبِيحَةٍ صَدَقَةٌ وَكُلُّ تَحْمِيدَةٍ صَدَقَةٌ وَكُلُّ تَهْلِيلَةٍ صَدَقَةٌ وَكُلُّ تَكْبِيرَةٍ صَدَقَةٌ وَأَمْرٌ بِالْمَعْرُوفِ صَدَقَةٌ وَنَهْيٌ عَنْ الْمُنْكَرِ صَدَقَةٌ وَيُجْزِئُ مِنْ ذَلِكَ رَكْعَتَانِ يَرْكَعُهُمَا مِنْ الضُّحَى(صحيح مسلم: 1701) 

 

तर्जुमा: अबू ज़र रज़ियल्लाहु अन्हु से नबी ﷺ ने कहा: सुबह को तुममें से हर एक शख़्स के हर जोड़ पर एक सदक़ा होता है, इसलिए हर एक तस्बीह (एक दफ़ा “सुब्हानअल्लाह” कहना) सदक़ा है। हर एक तहमीद (अलहम्दुलिल्लाह कहना) सदक़ा है। हर एक तहलील (ला इलाहा इलल्लाह कहना) सदक़ा है। हर एक तकबीर (अल्लाहू अकबर कहना) भी सदक़ा है। किसी को नेकी की तलीक़ीन करना सदाक़ा है और किसी को बुराई से रोकना भी सदक़ा है। और इन तमाम उमूर की जगह 2 रकअत जो इंसान चाशत के वक़्त पढ़ता है, किफ़ायत करती है।

 

(2) दूसरी हदीस: 

 

عَنْ أَبِي الدَّرْدَاءِ أَوْ أَبِي ذَرٍّ عَنْ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَنْ اللَّهِ عَزَّ وَجَلَّ أَنَّهُ قَالَ ابْنَ آدَمَ ارْكَعْ لِي مِنْ أَوَّلِ النَّهَارِ أَرْبَعَ  رَكَعَاتٍ أَكْفِكَ آخِرَهُ(الترمذي: 486)
 

अबू दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु या अबू ज़र से रिवायत है कि रसूल ﷺ ने कहा: अल्लाह फ़रमाता है: ऐ इब्न-ए-आदम! तुम दिन के शुरू में मेरी रज़ा के लिए 4 रकअत पढ़ा करो, मैं पूरे दिन तुम्हारे लिए काफ़ी हो जाऊंगा।

 

(3) तीसरी हदीस: 

 

عَنْ أَبِي أُمَامَةَ، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:مَنْ خَرَجَ مِنْ بَيْتِهِ مُتَطَهِّرًا إِلَى صَلَاةٍ مَكْتُوبَةٍ، فَأَجْرُهُ كَأَجْرِ الْحَاجِّ الْمُحْرِمِ، وَمَنْ خَرَجَ إِلَى تَسْبِيحِ الضُّحَى لَا يَنْصِبُهُ إِلَّا إِيَّاهُ، فَأَجْرُهُ كَأَجْرِ الْمُعْتَمِرِ، وَصَلَاةٌ عَلَى أَثَرِ صَلَاةٍ لَا لَغْوَ بَيْنَهُمَا، كِتَابٌ فِي عِلِّيِّينَ (ابوداؤد:558) 

 

हज़रत अबू-उमामा (रज़ि०)  से रिवायत हुई है  रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया :  जो आदमी अपने घर से वुज़ू करके फ़र्ज़ नमाज़ के लिये निकलता है तो  उसका अज्र और सवाब ऐसे है जैसे कि हाजी एहराम  बाँधे हुए आए और  जो शख़्स चाश्त की नमाज़ के लिये निकले और   उस मशक़्क़त या उठ खड़े होने की ग़रज़ सिर्फ़ यही नमाज़ हो तो ऐसे आदमी का सवाब उमरा करने वाले के  जैसा है। और  एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ कि उन दोनों के बीच कोई फ़ुज़ूल और बेकार बात न हो। इल्लीयीन में दर्ज की वजह है।

 

(4) चौथी हदीस: अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि आप ﷺ का फ़रमान है: 

 

من صلى الغداة في جماعة، ثم قعد يذكر الله حتى تطلع الشمس، ثم صلى ركعتين كانت له كأجر حجة وعمرة تامة تامة تامة۔ (صحيح الترمذي: 586)

 

तर्जुमा: जिसने नमाज़ फ़ज्र जमाअत से पढ़ी फिर बैठ कर अल्लाह का ज़िक्र करता रहा यहाँ तक कि सूरज निकल गया  फिर  उस ने दो रकअतें पढ़ीं  तो उसे एक हज और  एक उमरे का सवाब मिलेगा। वो कहते हैं कि रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया : पूरा-पूरा यानी हज और उमरे का पूरा सवाब।

 

नमाज़-ए-अव्वाबीन का हुक्म:

 

इस नमाज़ के हुक्म के बारे में इख़्तिलाफ़ पाया जाता है। कुछ ने इसे सबबी नमाज़ कहा क्योंकि इस क़िस्म के भी दलील वारिद हैं जैसा कि किसी ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा: क्या नबी ﷺ चाशत की नमाज़ पढ़ा करते थे? उन्होंने जवाब दिया: नहीं, इल्ला यह कि सफ़र से वापिस आए हों। (मुस्लिम:1691) 

 

कुछ ने पूरी तरह से इस नमाज़ का इंकार किया, बल्कि अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने इसे बिदअत कह दिया है, यह बात रावी की अदमे रूयत पर महमूल की जाती है जैसा कि हाफ़िज़ इब्न हजर रहिमहुल्लाह ने कहा है। कुछ उलमा ने कभी-कभार पढ़ने का जवाज़ ज़िक्र किया है जबकि शैख़ इब्न बाज़ ने चाशत की नमाज़ का हुक्म बयान करते हुए उसे सुन्नत-ए-मुक्किदा कहा है और बेश्तर उलमा अव्वाबीन की नमाज़ को इस्तिहबाब पर महमूल करते हैं। मेरी नज़र में भी इस्तिहबाब का 

 

हुक्म औला और अक़्वा है। इस सिलसिले में चंद दलीलें देखें:

 

(1) एक दलील ऊपर अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु को नबी ﷺ की 3 हमेशा वाली वसीयतें हैं जिनमें चाशत की नमाज़ भी ज़िक्र की गई है।

 

(2) नबी ﷺ का फ़रमान है: 

 

لا يُحَافِظُ على صلاةِ الضُّحَى إلا أَوَّابٌ وهي صلاةُ الأَوَّابِينَ(صحيح الجامع:7628)

 

तर्जुमा: नमाज़-ए-इशराक़ की सिर्फ़ अव्वाब (रुजू करने वाला, तौबा करने वाला) ही पाबंदी करता है, और यही नमाज़-उल-अव्वाबीन है।

यह हदीस जहाँ इस बात की दलील है कि चाशत की नमाज़ अव्वाबीन की नमाज़ है, वहीं इस में चाशत और अव्वाबीन की नमाज़ पर हमेशा की पाबंदी की भी दलील है, इसलिए इस नमाज़ का इंकार करना या इसे बिदअत कहना सही नहीं है, बड़े अज्र और सवाब का अमल है इस पर हमें मुदावमत बरतनी चाहिए।

 

नमाज़े अव्वाबीन की रकअत:

 

अव्वाबीन की नमाज़ कम से कम 2 और ज़्यादा से ज़्यादा 8 हो। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 2 रकअत, 4 रकअत और फ़तह मक्का के मौके पर उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा के घर में 8 रकअत पढ़ना साबित है। इन तमाम हदीसों की रोशनी में  मुस्लिम शरीफ़ में बाब है 

 

   (بَابُ اسْتِحْبَابِ صَلَاةِ الضُّحَى، وَأَنَّ أَقَلَّهَا رَكْعَتَانِ، وَأَكْمَلَهَا ثَمَانِ رَكَعَاتٍ، وَأَوْسَطُهَا أَرْبَعُ رَكَعَاتٍ، أَوْ سِتٍّ، وَالْحَثُّ عَلَى الْمُحَافَظَةِ عَلَيْهَا)

 

यानी बाब नमाज़े चाशत का इस्तिहबाब, यह कम से कम 2 रकअत, मुकम्मल 8 रकअत और दर्मियानी सूरत 4 या 6 रकअत है। नीज़ इस नमाज़ की पाबंदी की तलक़ीन के बारे में 12 रकअत सल्लातुस ज़ुहा वाली रिवायत साबित नहीं है, अत-तर्ग़ीब वत-तहरीब (1/320) लिलमुंज़िरी में है जो 2 रकअत नमाज़े चाशत अदा करे उसे ग़ाफ़िल में नहीं लिखा जाता। उसमें आगे यह टुकड़ा भी है: 

 

“مَن صلَّى ثِنْتَيْ عَشْرةَ رَكعةً بَنى اللهُ له بيتًا في الجنَّة” 

 

के जो 12 रकअत चाशत की नमाज़ अदा करे अल्लाह उसके लिए जन्नत में एक घर बनाएगा। इस हदीस को शैख़ अल्बानी रहिमहुल्लाह ने ज़ईफ़ अत-तर्ग़ीब में (405) में दर्ज किया है। 

 

और इसी तरह तिर्मिज़ी में यह रिवायत है: 

 

“مَن صلَّى ثِنْتَيْ عَشْرةَ رَكعةً بَنى اللهُ له بيتًا في الجنَّة” 

 

यानि जो चाशत की 12 रकअत अदा करेगा अल्लाह उसके लिए जन्नत में सोने का एक महल तामीर करेगा। शैख़ अल्बानी रहिमहुल्लाह ने इस हदीस को ज़ईफ़ तिर्मिज़ी (473) में दर्ज किया है।

 

नमाज़े अव्वाबीन का वक़्त:

नमाज़े अव्वाबीन के वक़्त से मुताल्लिक़ मुस्लिम शरीफ़ में एक वाज़ेह हदीस है:

 

عَنْ أَيُّوبَ عَنْ الْقَاسِمِ الشَّيْبَانِيِّ أَنَّ زَيْدَ بْنَ أَرْقَمَ رَأَى قَوْمًا يُصَلُّونَ مِنْ الضُّحَى فَقَالَ أَمَا لَقَدْ عَلِمُوا أَنَّ الصَّلَاةَ فِي غَيْرِ هَذِهِ السَّاعَةِ أَفْضَلُ إِنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ صَلَاةُ الْأَوَّابِينَ حِينَ تَرْمَضُ الْفِصَالُ(صحیح مسلم:1777)

 

तर्जुमा: अय्यूब ने क़ासिम शैबानी से रिवायत की कि ज़ैद बिन अर्कम रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुछ लोगों को चाशत के वक़्त नमाज़ पढ़ते देखा तो कहा: हाँ यह लोग अच्छी तरह जानते हैं कि नमाज़ इस वक़्त की बजाय एक और वक़्त में पढ़ना अफ़ज़ल है, बेशक रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: अव्वाबीन (इता’त गुज़ार, तौबा करने वाले और अल्लाह की तरफ़ रुजू करने वाले लोग) की नमाज़ उस वक़्त होती है जब (गर्मी से) ऊंट के दूध छुड़ाए जाने वाले बच्चों के पांव जलने लगते हैं।

मुस्लिम शरीफ़ में इस हदीस पर नमाज़ुल अव्वाबीन का बाब है जबकि सही इब्न ख़ुज़ैमा में सलात-उज़-ज़ुहा का बाब है। इसकी वजह यही है कि चाशत और अव्वाबीन दोनों एक ही नमाज़ है जैसा कि इसी हदीस में ज़िक्र है कि लोग चाशत की नमाज़ अदा कर रहे थे तो रसूल ﷺ ने फ़रमाया कि अव्वाबीन की नमाज़ यानी चाशत की नमाज़ फुलाँ वक़्त में है।

अव्वाबीन की नमाज़ का वक़्त तुलू-ए-आफ़ताब के कुछ मिनट बाद से शुरू होता है और ज़ह्र की नमाज़ से कुछ देर पहले तक रहता है और गर्मी तक मुअख़्ख़र करना अफ़ज़ल है जैसा कि  ऊपर वाली हदीस में ज़िक्र है। 

तर्माज़ का मानी है सूरज की गर्मी लगना और अलफ़िसाल का मानी ऊंट का बच्चा यानी अव्वाबीन का अफ़ज़ल वक़्त वह है जब गर्मी की शिद्दत से ऊंट का बच्चा अपने पांव उठाए और रखे। यह दिन का चौथाई हिस्सा यानी तुलू-ए-शमस और ज़ह्र के दर्मियानी निस्फ़ वक़्त है।

 

मग़रिब और इशा की नमाज़ के दरमियाँन नफ़्ल पढ़ना:  

 

मग़रिब के बाद 2, 4, 6, 8 और 20 रकात नफ़्ल पढ़ने की कई रिवायतें आई हैं, उन पर एक नज़र डालते हैं।

 

(1) पहली हदीस: 

 

من صلَّى ستَّ رَكَعاتٍ ، بعدَ المغرِبِ ، لم يتَكَلَّم بينَهُنَّ بسوءٍ ، عدَلَت لَه عبادةَ اثنتَي عَشرةَ سنةً۔ ( ترمذی: 435،ابن ماجہ:256) 

 

तर्जुमा: जिसने मग़रिब के बाद 6 रकात पढ़ीं और उनके दरमियाँन कोई बुरी बात न की, तो उसका सवाब 12 साल की इबादत के बराबर होगा।  

यह हदीस सख़्त ज़ईफ़ है, अल्लामा इब्न क़य्यिम ने तो इसे मौज़ू कहा है और शैख़ अल्बानी रहमतुल्लाह अलैह ने अलग-अलग जगहों पर ज़ईफ़ जिद्दा (सख़्त ज़ईफ) कहा है।  

हवाला के लिए देखें।  

(अल मीनारुल मुनीफ़: 40, ज़ईफ़ अत तर्ग़ीब: 331, अस  सिलसिलतुल ज़ईफ़ा: 469, ज़ईफुल जामे: 5661, ज़ईफ इब्ने माजा: 220, ज़ईफ इब्ने माजा: 256)  

 

(2) दूसरी हदीस: 

 

مَن صلَّى ستَّ ركعاتٍ بعدَ المغربِ قبل أن يتكلَّمَ ,غُفرَ لهُ بها ذنوبُ خمسينَ سنةٍ۔ 

 

तर्जुमा: जिसने मग़रिब के बाद बग़ैर बात किए 6 रकात पढ़ी तो उसके 50 साल के गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे। 

यह हदीस भी सख़्त ज़ईफ है। (अस सिलसिलतुल ज़ईफा: 468)

 

(3)  हज़रत अम्मार बिन यासिर फ़रमाते हैं: 

 

رأَيْتُ حبيبي رسولَ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم صلَّى بعدَ المغرِبِ ستَّ ركَعاتٍ وقال مَن صلَّى بعدَ المغرِبِ ستَّ ركَعاتٍ غُفِرَتْ له ذُنوبُه وإنْ كانت مِثْلَ زَبَدِ البحرِ(المعجم الأوسط:7/191, مجمع الزوائد:2/233)

 

तर्जुमा: मैंने अपने हबीब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा कि आप मग़रिब के बाद 6 रकात पढ़ते थे और फ़रमाते थे: जिसने मग़रिब के बाद 6 रकात पढ़ीं, तो उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे, चाहे वो समंदर की झाग के बराबर ही क्यों न हों।  

इमाम तिबरानी ने इसे मौजम औसत में ज़िक्र करने के बाद कहा कि इस हदीस को अम्मार से बयान करने वाला अकेला सालेह बिन क़तान है, वो भी सिर्फ़ इसी सनद से। और हैसमी ने मज्मू अल-ज़वाइद में इसे ज़िक्र करने के बाद कहा है कि इसमें सालेह 

बिन क़तान अल बुख़ारी है जिसका तर्जुमा मुझे नहीं मिल सका। इब्ने अल जौज़ी ने इस हदीस को अल इलालुल मुतनहीया (1/453) में शामिल करके कहा कि इसकी सनद में कई मजहूल रावी हैं।

 

(4) चौथी हदीस: 

 

مَن صلَّى ، بينَ المغربِ والعِشاءِ ، عشرينَ رَكْعةً بنى اللَّهُ لَه بيتًا في الجنَّةِ(ابن ماجه: 1373) 

 

तर्जुमा: जिसने मग़रिब और इशा के दरमियाँन 20 रकात नमाज़ अदा की, अल्लाह उसके लिए जन्नत में एक घर बनाएगा।  

इस हदीस को शैख़ अल्बानी रहमतुल्लाह अलैह ने मौज़ू कहा है। 

 

(5) पांचवी हदीस: 

 

مَن صَلَّى بعدَ المغرِبَ قبلَ أنْ يَتَكَلَّمَ ركعتيْنِ – وفي روايةٍ : أربعَ رَكعاتٍ – ؛ رُفِعَتْ صلاتُه في عِلِّيِينَ.(مسند الفردوس، مصنف عبدالرزاق:4833، مصنف ابن أبي شيبة:5986) 

 

तर्जुमा: जिसने मग़रिब की नमाज़ के बाद बिना बात किए 2 रकात, और एक रिवायत में 4 रकात पढ़ीं, तो उसकी नमाज़ इल्लीयीन में उठाई जाती है।  

इस हदीस को शैख़ अल्बानी रहमतुल्लाह अलैह ने ज़ईफ़ कहा है (ज़ईफ अत तर्ग़ीब: 335)

 
(6) छठी हदीस: 

 

من صلى أربعَ ركعاتٍ بعد المغربِ كان كالمعقبِ غزوةً بعد غزوةٍ في سبيلِ اللهِ(شرح السنة للبغوی:3/474)

 

तर्जुमा: जिसने मग़रिब के बाद 4 रकात अदा कीं, गोया वो अल्लाह की राह में लगातार एक गज़वा के बाद दूसरा गज़वा करने वाला है।  

अल्लामा शौकानी ने कहा कि इसकी सनद में मूसा बिन उबैदा अज़ ज़बदी बहुत ही ज़ईफ़ है (नीलुल औतार: 3/67)। इब्ने अल क़ैसरानी ने कहा कि इसमें अब्दुल्लाह बिन जाफ़र मतरूकुल हदीस है (तज़किरतुल हफ़्फ़ाज़: 335)। इब्ने हब्बान ने कहा कि इसमें अब्दुल्लाह बिन जाफ़र (अली बिन मदीनी के वालिद) है जिसे आसार की रिवायत में वहम हो जाता है और वह उलट देता है, इसमें ख़ता कर जाता है (अलमर्जूहीन: 1/509)

 

(7) सातवीं हदीस: 

 

منْ ركع عشرِ ركعاتٍ بينَ المغربِ والعشاءِ، بُنيَ له قصرٌ في الجنةِ۔(الجامع الضعیر: 8691)

 

तर्जुमा: जिसने मग़रिब और इशा के दरमियाँन 10 रकात नमाज़ अदा की, उसके लिए जन्नत में एक महल बनाया जाएगा।  

शैख़ अल्बानी ने इसे ज़ईफ़ कहा है (अस सिलसिलतुल ज़ईफ़ा: 4597) सुयूती ने इसे मुरसल कहा है (हवाला साबिक़)

 

इन सारी रिवायतों के बयान करने के बाद अब 2 बातें जान लें:  

 

(1) ये तमाम हदीसें आम हैं, उनमें आम नफ़्ल नमाज़ का ज़िक्र  है, उनका अव्वाबीन की नमाज़ से कोई ताल्लुक़ नहीं है। बतौर मिसाल इस टॉपिक के तहत मज़कूर पहली हदीस को देखें। तिर्मिज़ी में इस हदीस के ऊपर बाब है:

 

  “باب مَا جَاءَ فِي فَضْلِ التَّطَوُّعِ وَسِتِّ رَكَعَاتٍ بَعْدَ الْمَغْرِبِ”

 

यानी बाब है मग़रिब के बाद नफ़्ल नमाज़ और 6 रकात पढ़ने की फ़ज़ीलत के बयान में। और इब्ने माजा में इस हदीस पर बाब है “بَابُ: مَا جَاءَ فِي الصَّلاَةِ بَيْنَ الْمَغْرِبِ وَالْعِشَاءِ” यानी बाब है मग़रिब और इशा के दरमियाँन की नमाज़ के बयान में।  

 

(2) ये तमाम रिवायतें नक़ाबिले ऐतमाद और ज़ईफ़ हैं। शैख़ अल्बानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं: मग़रिब और इशा के दरमियाँन मुअय्यन रकात के साथ जो भी हदीसें आई हैं, कोई भी सहीह नहीं है, एक-दूसरे से ज़ईफ़ में शदीद हैं। इस वक़्त में बग़ैर त’यीन के नमाज़ पढ़ना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अमल की वजह से सहीह है। (अज़ ज़ईफ़ा: 1/481)

ख़ुलासा यह हुआ कि मग़रिब के बाद रकात मुअय्यन कर के कोई नमाज़ नहीं पढ़ सकते, वरना बिद’अत कहलाएगी क्योंकि इस सिलसिले में कोई रिवायत सहीह नहीं है। अलबत्ता बग़ैर त’यीन के मग़रिब और इशा के दरमियाँन नवाफ़िल पढ़ सकते हैं। 

 

नमाज़ अव्वाबीन और अहनाफ़:

 

अहनाफ़ के यहां अव्वाबीन की नमाज़ मग़रिब के बाद 6 रकात है, और जिन अहादीस से इस्तिदलाल करते हैं, उनका हाल 

ऊपर गुज़र चुका है कि सब ही ज़ईफ़ हैं और उनमें से कोई भी नमाज़ अव्वाबीन से मुताल्लिक़ नहीं है। कुछ आसार से पता चलता है कि अव्वाबीन की नमाज़ मग़रिब और इशा के दरमियाँन है मगर वह भी ज़ईफ़ हैं। मज़ीद, जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सरीह (स्पष्ट) अहादीस मौजूद हैं, ज़ईफ़ अक़वाल की तरफ़ इल्तिफ़ात भी नहीं किया जाएगा।

 

  1. मुहम्मद बिन अल मुकंदर से रिवायत है:

 

من صلى ما بين صلاةِ المغربِ إلى صلاةِ العشاءِ ؛ فإنها صلاةُ الأوابينَ۔

 

तर्जुमा: “जिसने मग़रिब और इशा के दरमियाँन नमाज़ अदा की वह अव्वाबीन की नमाज़ है।”  

इसे शैख़ अल्बानी रहमतुल्लाह अलैह ने ज़ईफ़ कहा है। (अस सिलसिलतुल ज़ईफा: 4617)  

अल्लामा शौकानी ने इसे मुरसल कहा है। (नील-उल-अवतार: 3/66)

 

  1. अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं:

 

صَلَاةُ الْأَوَّابِينَ مَا بَيْنَ أَنْ يَلْتَفِتَ أَهْلُ الْمَغْرِبِ إلَى أَنْ يَثُوبَ إلَى الْعِشَاءِ۔ (مصنف ابن ابی شیبہ)

 

तर्जुमा: “अव्वाबीन की नमाज़ का वक्त उस वक्त से है जब नमाज़ी नमाज़ मग़रिब पढ़कर फ़ारिग़ हो और इशा का वक्त आने तक रहता है।”  

इसकी सनद में मूसा बिन उबैदाह अज़ ज़बदी ज़ईफ़ है। 

 

अब्दुल्लाह बिन उमर से यह भी मर्वी है:  

 

مَنْ صلَّى المغربَ في جماعةٍ ثم عقَّبَ بعشاءِ الآخرةِ فهِيَ صلاةُ الأوَّابينَ۔

 

तर्जुमा: “जिसने मग़रिब की नमाज़ से पढ़ी उसे इशा की नमाज़ से मिलाया यही अव्वाबीन की नमाज़ है।”  

इब्ने अदी ने कहा कि इसमें बशर बिन ज़ज़ान ज़ईफ़ रावी है जो ज़ु’अफ़ा से रिवायत करता है। (अल कामिल फ़ी ज़ईफ़ा: 2/180)

 

  1. इब्ने अल मुकंदर और अबू हाज़िम से:

 

  “تتجافى حنوبهم عن المضاجع”

 

की तफ़सीर में मग़रिब और इशा के दरमियाँन अव्वाबीन की नमाज़ है। इसे बैहक़ी ने सुनन में रिवायत किया है और इसकी सनद में मशहूर ज़ईफ़ रावी इब्ने लहय’अह है जबकि सही हदीस में बग़ैर लफ़्ज़ अव्वाबीन के मग़रिब और इशा के दरमियाँन नमाज़ पढ़ना मज़कूर है।

 

  1. इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं: 

 

الملائكة لتحف بالذين يصلون بين المغرب والعشاء وهي صلاة الأوابين۔ (شرح السنۃ للبغوی ج 2ص439)

 

तर्जुमा: “फ़रिश्ते उन लोगों को घेर लेते हैं जो मग़रिब और इशा के दरमियाँन नमाज़ पढ़ते हैं और यह अव्वाबीन की नमाज़ है।

 

  1. कुछ मुफ़स्सिरीन ने सूरह इसरा में वारिद अव्वाबीन के तहत 

 

भी मग़रिब और इशा के दरमियाँन नमाज़ पढ़ने वाले को ज़िक्र किया है। तफ़सीर इब्ने कसीर में भी कई अक़वाल में एक यह क़ौल है।

यह सारे सिर्फ़ अक़वाल हैं जबकि सरीह सहीह मर्फ़ू रिवायत में अव्वाबीन की नमाज़ वही है जो चाश्त की नमाज़ है। और चाश्त और अव्वाबीन का वक्त तुलू ए आफ़ताब के बाद से लेकर ज़ह्र से पहले तक है। ताहम गर्मी के वक्त अदा करना अफ़ज़ल है। बिना-बरीं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साबित शुदा फ़रमान के सामने ज़ईफ़ अहादीस और ग़ैर मुस्तनद अक़वाल की कोई हैसियत नहीं है। और तहक़ीक़ से बस यही साबित होता है कि अव्वाबीन की नमाज़ चाश्त की नमाज़ है और इन दोनों में कोई फ़र्क नहीं है।

 

 

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