VESTIGE MARKETING ME MIMBAR SAAZI KA SHARAI HUKAM
वेस्टिज मार्केटिंग में मिम्बर साज़ी का शरई हुक्म
इस वक्त वेस्टिज (vestige) मार्केटिंग नामी नेटवर्क मार्केटिंग का लोगों में बड़ी चर्चा है। कई सालों से यह कंपनी मल्टी लेवल तिजारत के मैदान में काम कर रही है। आवाम की अक्सरियत इस कंपनी पर एतिमाद (भरोसा) रखती है और एक कसीर (बड़ी) तादाद में उससे जुड़कर पैसा कमा रही है। ग़ैर मुस्लिमों की तरह मुसलमानों की भी बड़ी तादाद इस से जुड़कर अपनी माशी हालत बेहतर बनाने में मसरूफ़ है। बल्कि कुछ मुसलमानों का कहना है इस बिजनेस से मुंसलिक (शामिल) होकर हम अपने अहले ख़ाना की किफ़ालत बेहतर अंदाज में कर रहे हैं।
इस्लाम हमें तिजारत करने से नहीं रोकता। इस्लाम माशी हालत बेहतर बनाने से नहीं रोकता और न ही अहले ख़ाना की बेहतर तौर पर किफ़ालत करने से रोकता है। ताहम इस्लाम ने हमें फ़ितरी निज़ाम जिंदगी दिया है जिसमें अल्लाह और उसके रसूल ने तिजारत के साफ़-सुथरे उसूल बताए हैं। यक़ीनन इस्लाम के पाकीज़ा तिजारती उसूल में ही जिंदगी की हक़ीक़ी सआदत, फ़र्द और जमात की असल कामयाबी और दुनिया के साथ आख़िरत की भी भलाई है। इस्लाम हमें कस्ब-ए-म’आश (रोज़ी कमाने) के लिए मेहनत पर उभारता है, उसे शरफ़ और फ़ज़ीलत का मक़ाम देता है। मेहनत भी जाइज़ तरीक़े से करनी होगी तभी रोज़ी पाकीज़ा और हलाल होगी वरना नाजायज़ तरीक़े से अनथक (लगातार) मेहनत करके हासिल की गई रोज़ी हराम होगी।
वेस्टिज का जितना शोहरा (चर्चा) है उसके बारे में लोगों में और इंटरनेट पर उतनी ही बातें फैली हुई हैं। मैंने उस कंपनी के उसूल और मक़ासिद को जानने की कोशिश की और उसके तरीक़े कार का जाइज़ा लिया तो वही कुछ ख़ामियाँ जो मैंने मल्टी लेवल कंपनी के मुताल्लिक़ रक़बा मज़मून में बयान किया है पाई हैं। क्योंकि यह भी मेंबर साज़ी वाली कंपनी है और ज़ाहिर सी बात है के मेंबर साज़ी के बुनियादी उसूल हैं और हर ऐसी कंपनी में पाई जाएंगी।
इसमें कोई शक़ नहीं कि उस कंपनी के पास अपने कुछ प्रोडक्ट्स हैं जिनके सहारे यह कंपनी चलाई जा रही है। दावा करने वाले मेंबरान ने कुछ 100 की तादाद तो कुछ 200 की तादाद तक बतलाई है। लोगों को नज़र भी आता है कि यह कंपनी अपने प्रोडक्ट की तिजारत कर रही है। इस कंपनी से जुड़ते वक्त कोई फ़ीस वसूल नहीं की जाती, बग़ैर फ़ीस के और बग़ैर कोई शर्त लगाए मेंबर का अकाउंट खोल दिया जाता है। अब यह मेंबर वेस्टिज से तिजारत करके पैसा कमाना चाहता है। वेस्टिज से जुड़कर माल कमाने के 2 तरीक़े अहम हैं।
- तो यह है कि जब वह इस कंपनी का मेंबर बना है तो ज़ाहिर सी बात है वह या तो सामान ख़रीदेगा या मेंबर साज़ी करेगा। गो कि यह इख़्तियारी है मगर और कोई ऑप्शन भी नहीं है। सामान ख़रीदने पर कुछ छूठ मिलती है और कुछ बोनस पॉइंट मिलते हैं। फिर उस ख़रीदे गए सामान को या तो ख़ुद इस्तेमाल करता है या मार्केट में बेचकर कुछ फ़ायदा कमाना चाहता है।
- सबसे बड़ा नफ़ा कमाने का तरीक़ा मेंबर साज़ी करना यानी वह लोगों में इस कंपनी और उसकी तिजारत की तश्हीर करके उन्हें उससे जोड़े। किसी ने मिसालन 6 आदमी जोड़े तो उन 6 आदमियों की कंपनी से ख़रीद पर फ़ायदे का कुछ कमीशन जोड़ने वाले को मिलेगा। यह 6 शख़्स फिर अपने साथ 6-6 आदमी को जोड़ते हैं तो उन सब की ख़रीद के फ़ायदे का कमीशन पहले शख़्स को भी मिलेगा। इस तरह जिस क़दर लेवल बनते जाएंगे सारे लेवल के फ़ायदे का कमीशन फ़र्स्ट शख़्स को भी हमेशा आता रहेगा, हत्ता कि वह मर जाए तब भी।
इस मार्केट में अमीर बनने और अचानक ग़रीबी दूर करने का जो न्यू फॉर्मूला लोगों को बताया जाता है उस झांसे में आकर लोग इसका मेंबर बन जाते हैं और एक मर्तबा मेंबर बनने के बाद या तो वह कंपनी का प्रोडक्ट ख़रीदेगा, सामान नहीं ख़रीदने का सवाल ही पैदा नहीं होता क्योंकि मेंबर बना ही जाता है सामान ख़रीदने के लिए वर्ना तिजारत किस काम की। मार्केट रेट से कई गुना महंगे सामान ख़रीदने से मेंबर को फ़ायदा नहीं बहुत ज़्यादा नुक़सान उठाना पड़ता है मगर यह नुक़सान दरअसल अमीर बनने की लालच में बर्दाश्त किया जाता है और इस बात को आम लोगों पर छुपाकर रखा जाता है। जिन चीज़ों की ज़रूरत
नहीं वह भी महंगे दामों पर कंपनी से ख़रीदकर मेंबर अपना पॉइंट बढ़ाना चाहता है। यहाँ एक मेंबर, मेंबर नहीं रह जाता, इन्वेस्टर्स बन जाता है फिर भी कंपनी की नज़र में कस्टमर ही कहलाता है। चीज़ों की ख़रीद और फ़रोख़्त से हासिल शुदा पॉइंट कमीशन और छूट मामूली होती है, असल फ़ायदा तो मेंबर साज़ी में है। एक मर्तबा चंद मेंबर बना लिए फिर घर बैठे बिना मेहनत फ़ायदा आता रहता है।
वेस्टिज से मुसलमान भी बड़ी तादाद में जुड़े हैं। उनके जुड़ने की वजह यह ख़ुशफ़हमियाँ हैं कि मरकज़ी जमीयत उलमा-ए-हिंद और दुबई हलाल मराकिज़ ने इस कंपनी की तसदीक़ की है यानी यह कंपनी हलाल सर्टिफाइड है। यह भी कहना है कि बहुत सारे मुसलमान इससे जुड़े हुए हैं और आज तक मुसलमान उलमा की तरफ़ से इसकी मुख़ालिफ़त नहीं हुई है। ख़ुशफ़हमियों में ज़्यादा इज़ाफ़ा करने वाला दारुल उलूम नदवातुल उलमा लखनऊ का फ़तवा है जिसमें इस बिजनेस को हलाल और उससे मुसलमानों के जुड़ने को जाइज़ कहा गया है।
मैं उन मुसलमान भाइयों को बतलाना चाहता हूँ कि वेस्टिज के ताल्लुक़ से अपनी ख़ुशफ़हमी ख़त्म करें और हलाल तरीक़े से रोज़ी कमाएं। अल्लाह ने ज़मीन बहुत कुशादा बनाई है, इस रु-ए-ज़मीन पर रोज़ी कमाने के लाखों जाइज़ जराए आमदनी हैं।
मुसलमानों की ख़ुशफ़हमियों से मुताल्लिक़ पहली बात यह कि मरकज़ी जमीयत उलमा-ए-हिंद और दुबई हलाल मराकिज़ ने इस वेस्टिज के प्रोडक्ट को हलाल कहा है, यह नहीं कहा कि इस प्रोडक्ट बेचने के तरीक़े भी हलाल हैं। इस बात को समझने की ज़रूरत है। और जहाँ तक नदवा के फ़तवा की बात है तो सवाल करने वाले ने फ़तवा में चालाकी से सवाल किया है, कंपनी के हक़ीक़ी सूरत ए हाल का ज़िक्र नहीं किया है और मुफ़्ती साहिबान ने भी तहक़ीक़ करके जवाब देने के बनाए जल्दबाज़ी से काम लिया है। बहरहाल, ताज़ा ख़बर के मुताबिक़ नदवा ने पिछले फ़तवे से रुजू कर लिया है और बाद में इस कंपनी से परहेज़ करने की सलाह दी है। दारुल उलूम देवबंद ने भी वेस्टिज से जुड़कर मेंबर साज़ी के ज़रिये फ़ायदा कमाने को जाइज़ नहीं कहा है।
आईये मैं आपको वेस्टिज से जुड़ने की शरई हैसियत बताऊँ अगर आप इस कंपनी का मेंबर बनकर सिर्फ़ सामान की ख़रीद और फ़रोख़्त तक अपने आप को महदूद रखते हैं और किसी क़िस्म की ग़लत तश्हीर में हिस्सा नहीं लेते हैं तो यहाँ तक मामला सही है। मगर कोई भी मेंबर मल्टी लेवल कंपनी में मेंबर साज़ी से बाज़ नहीं रह सकता, आख़िर इसी में अमीर बनने का नुस्ख़ा है और इस बात के झांसे में आकर कंपनी में शमूलियत इख़्तियार किया गया है। यह कैसे मुमकिन है कि कोई मेंबर उस कंपनी के सस्ते और बिना काम वाला सामान महंगे क़ीमत में ख़रीदता रहे जबकि बाज़ार में उससे कई गुना सस्ता सामान मौजूद है?
मेम्बर साज़ी के ज़रिए पैसा कमाना पहले लेवल तक तो जायज़ है जिनको ख़ुद से बिला वस्ता कंपनी का सदस्य बनाया है लेकिन जिन्होंने जिन लोगों को सदस्य बनाया है या उनके बाद वाले जिनको सदस्य बनाया है या उनके बाद वाले जिनको सदस्य बनाएंगे उन लोगों के मुनाफ़े से कमीशन लेना जाइज़ नहीं है। शरियत की रू से मुनाफ़े की जाइज़ 3 सूरतें बनती हैं।
(1) या तो हमने कारोबार में रक़म लगाई हो और मेहनत भी करते हों, यह शरीक़त है।
(2) या सिर्फ़ रक़म लगाई हो मेहनत कोई दूसरा करे, यह मुज़ारबत (कारोबार में ऐसी साझेदारी कि माल एक का हो और मेहनत दूसरे की) है।
(3) या बग़ैर रक़म के मेहनत करते हों उसे इजारा यानी मज़दूरी कहते हैं। मेम्बर साज़ी का ताल्लुक़ इस तीसरी क़िस्म से है इस लिहाज़ से अपनी मेहनत की मज़दूरी सिर्फ़ पहले लेवल तक ही जायज़ है, उसके बाद वाले मरहलो का मुनाफ़ा और कमीशन लेना ना जायज़ है।
वेस्टीज की ज़्यादा चंद ख़ामियां आपके सामने रखना चाहता हूँ ताकि इसके नुक़सानों से एक मुसलमान ब-ख़बर रहे और ख़ुद को उस कंपनी से अलग रखे।
(1) दुनियां भर की मल्टी लेवल कंपनियां अपने से जोड़ने के लिए झूठे क़िस्से, बनावटी कहानियां और लफ़्फाज़ी के ज़रिए लोगों को अपना शिकार बनाती हैं, ये कंपनियां अपने मेंबर्स को उसकी ही असल ट्रेनिंग देती हैं कि लोगों को कैसे कन्विंस करना है और किस तरह कंपनी जॉइन करानी है?
गांव वालों को कैसे फंसाना है और शहरी को कैसे लुभाना है? वेस्टीज की हज़ारों वीडियो यूट्यूब पर दस्तयाब हैं जहाँ लोगों को अपना शिकार बनाने की तरह-तरह के फ़ार्मूला बयान किए गए हैं। दुनियां की घटिया से घटिया व्यापारिक कंपनी (जो मल्टी लेवल ना हो) अपना सामान बेचने के लिए ऐसे हर्बे नहीं अपनाती।
(2) यह सही है कि वेस्टीज के पास ज़ाती प्रोडक्ट है बज़ाहिर उसी की तिजारत नज़र आती है और हुकूमत से रजिस्टर्ड कराने के लिए भी कोई न कोई सबूत देना पड़ेगा, यह प्रोडक्ट्स हुकूमत की नज़र में तिजारती सबूत हैं, हालांकि इसके तमाम मेंबर्स की तवज्जो का मर्कज़ असल सिर्फ़ सदस्य साज़ी है, गोया बाराए नाम तिजारत है, उसके पर्दे के पीछे लोगों का माल बातिल तरीक़े से खाया जा रहा है।
(3) कंपनी और चीज़ों की ऐडवर्टाइजिंग में झूठ, धोखा, ग़ुलाम, क्यूगुलेशन और अनोखे ख़्वाब बयान किए जाते हैं यहाँ तक कि दबाव तक बनाया जाता है। इस्लाम में न इस तरह कोई सामान बेचा करने की इजाज़त है और न ही किसी कंपनी की इस तरह विज्ञापन करने की इजाज़त है।
(4) सदस्य साज़ी के ज़रिए एक तरह से पूरे शहर और मुल्क को होस्टेज बनाने की कोशिश है, इस नेटवर्क मार्केट से जुड़ने वाला फिर दूसरे तमाम मार्केट से महरूम हो जाता है या ऐसा भी कह सकते हैं कि शहर और मुल्क को तमाम व्यापार के लिए नुक़सान देह है।
(5) जिस तरह आदमी जुआ खेलता है पैसे लगाता जाता है ताकि कभी न कभी अचानक अमीर बन जाएगा, इसी तरह इसके मेंबर्स लालच में हर महीने ज़्यादा से ज़्यादा कंपनी के प्रोडक्ट ख़रीदते हैं हालाँकि उन्हें उनकी ज़रूरत नहीं होती है, सिर्फ़ लालच उन्हें यह सामान ख़रीदवाता है।
(6) अगर कोई मेंबर कंपनी से ऑनलाइन ख़रीदता है और उस सामान पर क़ब्ज़ा करने से पहले बेच देता है, तो यह सूरत भी जाइज़ नहीं है। इसे मिसाल से ऐसे समझें कि किसी मेंबर ने वेस्टीज का कोई प्रोडक्ट बुक किया, फिर उस सामान पर अपना कब्ज़ा करने से पहले ही किसी दूसरे के हाथ बेच देता है।
(7) वेस्टीज के बहुत ही मोटिवेशनल माने जाने वाले स्पीकर्स शर्मा का कहना है कि एक शख़्स की मौत के बाद भी उसकी बीवी को 17,00,000 का चेक मिला क्योंकि उसने मेंबर्स का जाल बनाया था, गोया मेंबर साज़ी का कमीशन लिमिटेड है। जो मुसलमान भाई यह कहते हैं कि हमें कंपनी सिर्फ़ 8 या 9 लेवल तक कमीशन देती है क्योंकि हमारी मेहनत उन लेवल तक ही लिमिटेड रहती है, सरासर झूठ है। भला एक शख़्स मरने के बाद क्या मेहनत करता है?
(8) मेंबर साज़ी के अलावा लालच में महंगे सामान की ख़रीद पर मेंबर जितना पैसा साल भर बर्बाद करता है, उससे अपनी कोई छोटी-मोटी तिजारत शुरू कर सकता है।
(9) जो लोग समझते हैं कि वेस्टीज के ज़रिए हम अचानक अमीर हो जाएंगे, वे बड़ी भूल में हैं और झूठे लोगों की झूठी तसल्ली में पड़े हुए हैं। वे कम से कम इस कंपनी के सबसे ज़्यादा मशहूर और मोटिवेशनल माने जाने वाले स्पीकर्स जय शर्मा के बयान सुन लें कि कामयाबी के लिए किस क़दर मेहनत चाहिए? जब वेस्टीज के ज़रिए कमाने के लिए उसका मेंबर बनकर अपने पैसे से ऑफ़िस खोलना है, अपने पैसे से प्रोडक्ट ख़रीदना है और थकावट की मेहनत करनी है, तो फिर क्यों न ख़ुद की कोई छोटी तिजारत शुरू कर ले या किसी हलाल तिजारत की एजेंसी ले ले। मुमकिन है आमदनी कम हो, मगर जाइज़ और हलाल तो होगी।
(10) एक बात और आपको बता दूं कि मल्टी लेवल कंपनियों में कामयाबी चंद लोगों को मिलती है। वेस्टीज के मेंबर्स लाख से ज़्यादा हैं और उस कंपनी की वेबसाइट पर 16 लोगों की कामयाबी का मामूली ज़िक्र मिलेगा, बाक़ी नाइन्टीन नाइन हंड्रेड नाइन्टीन थाउज़ेंड नाइन हंड्रेड फोरटीन की कामयाबी का कोई ज़िक्र नहीं मिलेगा। महीनों में लाखों और करोड़ों कमाने वाले 2-1 होंगे, बाक़ी सारे लाखों मेंबर्स निवेश कर रहे हैं और कड़ी मेहनत कर रहे हैं, मगर वह कामयाबी उनके हिस्से में नहीं है। यह दौलत की ग़ैर मुंसिफ़ाना तक़सीम है जो सरमाया-दाराना निज़ाम में पाई जाती थी, फिर इश्तिराकियत (कम्यूनिज़्म/समाजवाद) ने बराबरी का नारा लगाया और वह भी अपनी मौत आप मर गई। इस्लामी निज़ाम-ए-म’ईशत की ख़ूबी है कि इसमें सरमाया-दाराना निज़ाम की तरह दौलत की ग़ैर मुनासिब तक़सीम है और न ही इश्तिराकियत की तरह मुसावात (बराबरी) का नाक़ाबिले क़बूल दावा। बल्कि इस्लाम उन दोनों के बीच लोगों के बीच अदल के साथ ए’तिदाल और तवाज़ुन भी क़ाइम करता है। अल्लाह का फ़रमान है:
كِي لَا يَكُونَ دُولَةً بَيْنَ الْأَغْنِيَاءِ مِنْكُمْ (الحشر:7)
तर्जुमा: ताकि तुम्हारे दौलतमंदो के हाथ में ही माल गर्दिश करता न रहे।
इन सारी बातों के बाद आख़िर नतीजा यह निकलता है कि वेस्टीज से जुड़कर मेंबर साज़ी के ज़रिए पैसा कमाना मुसलमानों के लिए जाइज़ नहीं है, लिहाज़ा हमें इससे नहीं जुड़ना चाहिए। हाँ, इस कंपनी से कोई आदमी हलाल फूड या हलाल प्रोडक्ट ख़रीदता है तो इसमें कोई हरज नहीं है।