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QADIYANIYAT KE BADHTE QADAM AUR HAMARI ZIMMEDARIYAN

क़ादयानियत के बढ़ते क़दम और हमारी ज़िम्मेदारियाँ 

 

तहरीर: शैख़ मक़बूल अहमद सलफ़ी हाफ़िज़ाहुल्लाह

हिंदी मुतर्जिम: हसन फ़ुज़ैल

 

अक़ीदा-ए-ख़त्मे नबुव्वत, अक़ाइद के बाब में एक अहम तरीन अक़ीदा है। अहद ए रसूलुल्लाह ﷺ से ही इस अक़ीदे की हिफ़ाज़त की गई है और आज तक बल्कि यह कह लें कि क़यामत तक मनहजे सलफ़ पर चलने वाले कमा-हक़्क़हु (जैसा की उस का हक़ है) इसकी हिफ़ाज़त करते रहेंगे इस सिलसिले में मुनाज़िर ए इस्लाम मौलाना सनाउल्लाह अमरतसरी रहिमहुल्लाह का नाम हमेशा सर ए फ़ह्रिस्त रहेगा।

इस्लाम अल्लाह का निज़ाम और उसके दस्तूर का नाम है इस लिए अल्लाह के दुश्मन हमेशा से इस्लाम के ख़िलाफ़ साज़िश करते रहे मगर इस्लाम हमेशा फ़लता फ़ुलता रहा और ज़माने में फैलता रहा अल्लाह ने इस दीन को तमाम दीन ए बातिला पर ग़ालिब करने का वादा कर लिया है और इन शा अल्लाह यह हो कर रहेगा चाहे क़ुफ़्फ़ार की सारी ख़ुदाई इसके ख़िलाफ़ आपस में दोस्त और मददगार ही क्यूँ ना बन जाएँ।

नबुव्वत के नाम पर जिस तरह अहद ए रिसालत में झूठे दावेदार पैदा होते रहे आज भी नए रंग रूप ले कर ज़ाहिर हो रहे हैं। उनके अहम मक़ासिद में मुसलमानों को इस्लाम से दूर करना, 

ग़ैरों को इस्लाम में दाख़िल होने से रोकना और दुनियावालों पर इस्लाम की इमेज बिगाड़ कर पेश करना है।

इस के बिल मुक़ाबिल ऐसे नज़रियात पेश करना है जिस से ज़ाहिर हो कि अमान इस्लाम में नहीं है बल्कि हमारे पास है या दूसरे अल्फ़ाज़ में ऐसा समझें के इस्लाम वो नहीं जो पुराने ख़याल के दक़ियानूस मुसलमान पेश कर रहे हैं बल्कि रोशन ख़याली, बैनल-अक़वामी अमान और सलामती, आलामी मरासिम और रवाबित (ताल्लुक़ात) और असल इस्लाम तो हमारे पास है।

यही वजह थी के इस्ते’मारी (colonial) क़ुव्वत के लिए हिंदुस्तान में जब मुसलमानों को जिहाद से रोकने का मसला आया तो मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद जैसा वफ़ादार ग़ुलाम मिला। इसने अंग्रेज़ वफ़ादारी में ना सिर्फ़ जिहाद का इंकार किया बल्कि धीरे धीरे नबुव्वत का दावा भी कर बैठा। मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद कल अंग्रेज़ों की ज़रूरत था और आज मुसलमानों के लिए बड़ा चैलेंज़ बन कर सामने आ गया है।

मौलाना सनाउल्लाह अमरतसरी रहिमहुल्लाह से मुबाहिला के बाद मिर्ज़ा बदतरीन मौत मर तो गया मगर पीछे छोड़ी गई दर्जनो नजिस किताब और पलीद आक़ाओं की मदद से मिर्ज़आई फ़िरक़ा ज़िंदा रहा जिस के मानने वाले हिंदुस्तान और पाकिस्तान में ज़्यादा तादाद में और छोटी छोटी टोलियो में 

दुनिया के अक्सर हिस्से में मौजूद हैं।

यह अरब ममालिक समेत अफ़रिक़ी और मग़रीबी ममालिक में भी पाए जाते हैं यहाँ तक के इसराइल से गहरे रवाबित (ताल्लुक़ात) हैं। जिस तरह हिंदुस्तान में अंग्रेज़ सरकार ने इस शजरा ए ख़बीसा की आबयारी की इसी तरह आज भी कर रही है। इस्राइल की तरफ़ से उसे बड़ा फंड मिलता है जिस के ज़रिए यह अपनी दावती मिशनरीज़, रिफ़ाही इदारे, तालीमी सेंटर चला रहे हैं। उन्हीं पैसों को मुबल्लिग़ीन और क़ादयानी कुतुब और उनकी नश्र-ओ-इशा’आत पर ख़र्च किया जाता है।

पाकिस्तान में रबवाह, हिंदुस्तान में क़ादयान और इस्राइल में हेफ़ा क़ादयानो का मरकज़ है। इस्राइल की तरह हिंद की संघी तांज़ीम आरएसएस से बड़े गहरे ताल्लुक़ात और एक दूसरे के दस्त और बाज़ू हैं। आरएसएस की ज़ीली संघी तांज़ीम ‘राष्ट्रीय मुस्लिम मंच’ में असल किरदार मुसलमानों का नहीं क़ादयानों का है। बिल-आख़िर हमारे सामने जो नताइज है वो निहायत ही अफ़सोसनाक है। दिन बदिन यह फ़िरक़ा अपनी जड़े मज़बूत करता चला रहा है और इस्लाम के रास्ते में और अक़ीदा ख़त्मे नबुव्वत के बाब में हमारे लिए बड़ी मुश्किलात पैदा कर रहा है। सब से बड़ी फ़िक्रमंदी तो यह है के आज तक जितने भी लोग इसका आला बने या बन रहे हैं उनकी अक्सरीयत मुसलमानों की है। यह फ़िरक़ा मुसलमानों को गुमराह कर के क़ादयानी बना रहा है क्योंकि यह ख़ुद को मुसलमान ज़ाहिर करता है, अपना 

नाम अहमदी या अहमदी मुसलमान या अहमदिया मुस्लिम कम्युनिटी बतलाता है।

जिस मुल्क में भी यह फ़िरक़ा मौजूद है उस मुल्क में हुकूमती तौर पर ख़ुद को मुसलमान की लिस्ट में दाख़िल करवाने की कोशिश करता है। हिंदुस्तान में मुस्लिम प्रोफ़ेशनल लो बोर्ड में शिया की भी रुक्नियत है, आरएसएस के ज़ैर ए असर मक़ामात पर वक़्फ़ बोर्ड और हज कमेटी के असल ज़िम्मेदार होते हैं जब के अंग्रेज़ी दौर ए हुकूमत में मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने ख़ुद को मुसलमानों से अलग एक मुस्तक़िल फ़िरका की हैसियत से ख़ुद को मुत’आरफ़ (परिचित) करवाया था लेकिन आज़ादी के बाद कांग्रेस पार्टी मुस्लिम दुश्मनी में 2011 की पहली बार मर्दुम-शुमारी के वक़्त मुस्लिमों के साथ शुमार में लाई और बर-वक़्त तो भारतीय जनता पार्टी है जिस के मंशूर में मुस्लिम दुश्मनी के अलावा कुछ है ही नहीं।

पाकिस्तान में क़ादयानी अपना क़दम मज़बूत और हुकूमती सतह पर अपनी पकड़ बना लिया था इस वजह से वहां बतौर ए आईन ग़ैर मुस्लिम अक़ल्लियत (minority) क़रार देने में काफ़ी वक़्त लग रहा है,1953 की तहरीक ख़त्म-ए- नुबुव्वत में हज़ारों मुसल्मानों ने जाम ए शहादत नोश किया फ़िर भी क़ादयानी ग़ैर मुसलिम होने का मुतालबा पूरा न हो सका ताहम क़ादयानी वज़ीर ए ख़ारजा ज़ाफ़रुल्लाह ख़ान की बर-तरफ़ी (discharge) हो गई जिस की वजह से रब्वा में एक बड़ी 

अराज़ी क़ादयानी मरकज़ के लिए आलात की गई थी। 70,000 से ज़्यादा की आबादी वाले शहर रबवाह की 97% आबादी क़ादयानियों पर मुहीत है और इस जगह का इस्तेमाल क़ादयानियत की तबलीग़ में बड़े शुद्द और मद्द के साथ किया जा रहा है।

आज़ाद क़श्मीर की असेम्बली 1973 में क़ादयानियों को ग़ैर मुसलिम क़रार दिया जबके अप्रैल 1974 में रब्ता आलम इस्लामी ने मक्का मुकर्रमा में एक बड़ा इज्लास मुनक़िद किया जिस में दुनिया फिर से मुस्लिम तंज़ीमें और उलमा ए किराम ने शिरकत की और इस इज्लास में मिर्ज़ाई को ग़ैर मुस्लिम क़रार देकर तमाम मुसलिमों से इस का बॉयकॉट करने उस से मुतनब्बे (aware) रहने और उसका डट कर मुक़ाबला करने की अपील की इसी साल 7 सितम्बर को मुसलमानों की मुश्तरिक कोशिश रंग लाई और पाकिस्तान में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के अहद ए हुकूमत में तवील बहस और मुनाज़रा के बाद क़ादयानी को दस्तूर तौर पर ग़ैर मुस्लिम अक़लियत क़रार देकर तारीख़ रक़म की गई। वहां आवामी तौर पर आज भी 7 सितम्बर को यौम ए ख़त्म-ए-नुबुव्वत के तौर पर मनाया जाता है।

तम्हीदी (preliminary) बातें कुछ लंबी हो गईं, अब आते हैं असल मक़सद की तरफ़ के मिर्ज़ाई तौला किस तरह अपना क़दम बढ़ा और जमा रहा है, उसे समझने की ज़रूरत है ताकि उसका बढ़ता क़दम रोका जा सके और फ़ितना इर्तिदाद का सद्द-

ए-बाब किया जा सके। यह काम मुसलमानों के किसी मख़सूस फ़र्द या मख़सूस तंज़ीम का नहीं है बल्कि हर मुवह्हिद का है, तमाम मुसलमानों का है बिलख़ुसूस बा-असर मुस्लिम शख़्सियत, ज़ेर-ए-क़ियादत मुस्लिम हुक्मरान और ‘आलमी पैमाने पर असर और नुफ़ूज़ वाली मुस्लिम तंज़ीमात का है।

क़ादयानी फ़िरक़ा अवाम में ख़ुद को मुसल्लम मुश्ताहिर करता है और सरकारी तौर पर मुसल्लम का ख़िताब पाने के लिए सियासी हथकंडे अपनाता है ज़रा सा कहीं मौक़ा मिला क़ादयानी मीडिया को ब-रू-ए-कार (सक्रिय) लेते हुए दुनिया भर में इसका प्रचार करता है। इसकी एक बड़ी मिसाल 2017 में अबू धाबी में मुन’अक़िद होने वाले बैनुल अक़वामी कॉन्फ़्रेंस से लेले।

यह कॉन्फ़्रेंस शैख़ अब्दुल्लाह बिन बय्याह की क़ियादत में “تعزيز السلم فى المجتمع المسلم” के टॉपिक से हुई इसमें ना जाने कैसे दो क़ादयानी भी शारिक हो गए उन्होंने उसमें शिरकत की वीडियो बनाई और उसे क़ादयानी चैनल रबवाह टाइम्स को भेज दिया जिसने मुख़्तलिफ़ तरीक़े से कई दिन तक नमक मिर्च लगा कर इस ख़ैर की इशा’अत (तबलीग़) की, लोगों में ग़लत फ़हमिया फैलाता रहा यहाँ तक के एक शिया चैनल ने कह दिया के सउदी मुफ़्ती ने क़ादयानी को मुस्लिम क़रार दे दिया। इस वाक़ि’आ में हमारे लिए नसीहत यह है के अपनी मख़सूस मजालिस से उन्हें दूर रखें यह किसी भी भेस में भी हो सकते हैं 

और हमारे ही प्रोग्राम को हमारे ख़िलाफ़ मोर्चा बना सकते हैं।

सरकारी औहदों की हुसूल याबी अहम तरीन हथकंडा है, क़ियादत मिलने के बाद ज़ीला क़तरा समाज में गोलना शुरू कर देता है जिसके ज़ैर-ए-असर कमज़ोर ईमान वालों का दिल क़ादयानियत की वबा से बीमार हो जाता है। मुहम्मद ज़फ़रुल्लाह ख़ान के दौर में पाकिस्तानी हुकूमत की तरफ़ से रबवाह नामी जगह की फ़राहमी उसकी ज़िंदा मिसाल है।

1034 एकड़ पर मुश्तामिल यह जगह आज क़ादयानी की तबलीग़ का मरकज है और क़ादयानियों का सिटी कहलाता है। यहाँ क़ादयानी की इशात का कौन सा वसीला मौजूद नहीं है। तालिमी इदारे, तब्लीग़ी मराकिज़, इबादत गाहे, क़ादयानी मीडिया का बेहतर इंतज़ाम है और यह दुनिया भर के क़ादयानियों की तवज्जोह का ना सिर्फ़ मरकज़ है बल्कि उसके सालाना इज्तिमा में हिन्द-पाक के अलावा तमाम ममालिक से क़ादयानी शरीक होते हैं। माज़ी की इस ग़लती से हमें सबक़ लेना है और आइन्दा यह मंसूबा बनाना है के हुकूमत के ऐसे ओहदों पर किसी क़ादयानी को बर्दाश्त न किया जाए जिस से इस्लाम और मुसलमानों को ख़तरा लाहिक़ हो।

इंतिशार और बलवीर के मवाक़े से फ़ायदा उठाना भी क़ादयानी हथकन्डा है इसे हालात में ये लोग बड़ी अय्यारी से अपने अफ़कार और ख़यालात फ़ैलाने की कोशिश करते हैं। लोगों का 

ज़हन इंतिशार में मुब्तला होता है और क़ादयानी अपने मिशन में मसरूफ़ होते हैं ताकि ऐसे हालात में कोई उन पर शक भी न कर सके।

आप यह समझें के हर क़ादयानी मुबल्लिग़ है, स्टूडेंट के भेस में, रोज़गार की तलाश में, बीमार की शक्ल में, अख़बारी नुमाइंदगी होने के बहाने से यानी वो जिस रूप में भी हो एक मुबल्लिग़ है। हमें हर क़ादयानी से बचना है और अपना ईमान बचाना है और दूसरों को उसका आला कार बनने से रोकना है।

क़ादयानी का ख़तरनाक जाल जिस में बड़े बड़े फ़ंस जाते हैं कलमा की तबलीग़, नर्म अख़लाक़ का मुज़हिरा, शाइर इस्लाम का इस्तेमाल और ख़ुद को मुसलमान बतलाना है। जब कोई क़ादयानी तबलीग़ करेगा तो कहेगा हम भी मुसलमान हैं। “ला इलाहा इल्लाल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” की तबलीग़ करते हैं मस्जिद में नमाज़ अदा करते हैं और मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद को सिर्फ़ एक मुबल्लिग़ और मुजद्दिद मानते हैं जबकि मिर्ज़ा को अपना नबी मानता है और कलमा में मुहम्मद से मुराद मिर्ज़ा ही लेता है। इस तरह शुरू में मीठा ज़हर देंगे फिर मौत के घाट उतार देंगे इसलिए कोई मुसलमान क़ादयानी से धोका न ख़ाए, न कलमा से, न उसके श’आइर से और न ही अच्छे अख़लाक से।

एक बड़े भयानक फ़रेब का पता चला है के क़ादयानियत की तश्हीर में एडीएस से भी काम लिया जाता है। इसका तरीक़ा 

कार यह है के दोस्ती के नाम पर लड़कियों के मोबाइल नंबर अख़बारात और ज़राइद के ज़रिया मशहूर कर दिए जाते हैं ये लड़कियाँ दोस्ती के बहाने लड़कों को ज़िनाकारी के गिरोह में शामिल करती हैं जो एडीएस वाली होती है जब लड़कों को एडीएस का रोग लग जाता है तो उस गिरोह के लिए काम करना मजबूरी बन जाती है। क़ादयानियत की तश्हीर में लड़कियों का इस्तेमाल किसी भी तरह हो सकता है मिसालन रोज़गार, शादी, तालीम मामलात, तिजारत वग़ैरह।

क़ादयानी की तरफ़ से मुख़्तलिफ़ क़िस्म के मुहार्रिफ़ तर्जुमा और तफ़सीर मौजूद हैं 80 से ज़्यादा लैंग्वेज़ में क़ादयानी तराजिम (translations) और 200 से ज़्यादा ममालिक में उनकी तफ़्हीम इस फ़िर्क़े के बढ़ते वसी क़दम की तरफ़ इशारा कुनाँ है। अब तो एंड्रॉयड मोबाइल में क़ादयानियों की तरफ़ से मुख़्तलिफ़ ज़बानों में मुख़्तलिफ़ क़िस्म के क़ुरआनी ऐप्स भी डाल दिए गए हैं ऐसे भी ऐप हैं जिन की मदद से 24 घंटे उनकी मज़हबी नशरियत सुन सकते हैं। अब तो क़ादयानी घर-घर और हर इंसान तक पहुंच गया ऐसे में हमें क्या करना है सोचने का मक़ाम है? जानते हैं सोशल मीडिया यह क़ादयानी ग्रुप और पेज चलाने वाले सैलरी पर रखे गए हैं।

एक हथकन्डा जो हर बातिल मज़हब का है, माद्दियत (realism) का धोखा, उसने भी अपना रखा है। इस हथकन्डे से ना-ख़्वांदा (अनपढ़) और मजबूर और हाजतमंद को तालीम, 

नौकरी, मकान, इलाज, पैसा, ख़रजी ममालिक का सफ़र और दूसरे ममालिक की नेशनैलिटी की ख़िदमत मुहैया कर के बदले में दीन का सौदा करता है।

हिंदुस्तान में आरएसएस और हिंदुत्व के मंसूबों की तकमील में शामिल और मुसलमानों के ख़िलाफ़ हर क़िस्म के मवाद फ़राहम करने वाला ख़तरनाक एजेंट क़ादयानी है। आप को हैरत होगी ग़ैर मुस्लिम को इस्लामी तालिमात में शक करने उन पर ऐतराज़ करने और मज़ाक़ उड़ाने का मक़ाम कैसे मिलता है? यही ग़द्दार है जो हमारी बातें उन तक पहुंचाते हैं और क़ुरआन और हदीस से मवाद तलाश कर देते हैं। क़ादयानी का यह हथियार न सिर्फ़ हिंदुस्तान में चलाया जा रहा है बल्कि हर जगह इसे आज़माया जा रहा है।

ख़ुद को सुन्नी मुसलमान कहने वाला नापाक इंसान तारीक़ फ़तह का किरदार आप के सामने है। दुनिया में क़ादयानियत के बढ़ते वसी क़दम और उनके अस्बाब आप के सामने हैं, एक मुसलमान होने के नाते इस फ़ितना का सद्द-ए-बाब (दरवाज़ा बंद करना) और अक़ीद़ा ख़त्म नबुव्वत का तहफ़्फ़ुज़ हर इंसान बशर की पहली ज़िम्मदारी है। आइये आज आज़मे मुसम्मम (मज़बूत इरादा) करते हैं के हम में से जो मुहर्रिर (तहरीर लिखने वाला) है वो तहरीर से, जो मुक़र्रिर है वो तक़रीर से, जो बा-असर है वो अपने असर से, जो साहिबे इक़्तिदार है वो क़ुव्वत और इक़्तिदार से और जो मालदार है अपने माल से कलमा-ए-

तौहीद को सरबुलंदी और अक़ीदा ख़त्म नबुव्वत का तहफ़्फ़ुज़ करते हुए फ़ितना-ए-इर्तिदाद को रोके गा।

हम में से हर पढ़ा लिखा जिस के गिर्द क़ादयानी को इस्लाम में दाख़िल करने की ख़ालिस नियत करे, मदद करने वाला अल्लाह है। आम आदमी कम अज़ कम इस ज़िम्मेदारी का अहसास करे के जब भी उसे किसी क़ादयानी मकर और फ़रेब की ख़बर हो तो फ़ौरान मुस्लिम शख़्सियात को इत्तिला (ख़बर) करे। इतना तो हर आदमी कर ही सकता है के अपने घर में क़ादयानी इल्हाद और कुफ़्र और उस की चाल बाज़ीयों से बाख़बर करे जिस का फ़ाइदा यह होगा के आप के घर का मुसलमान इस फ़िरक़ा का आला-ए-कार बनने से बच सके गा। गुफ़्त-ओ-शुनीद (बातचीत) से मालूम हुआ है के बहुत से वह मुसलमान जो किसी मजबूरी के तहत क़ादयानी का शिकार हो गए हैं और उन्हें अपनी ग़लती का अहसास हो गया है वो वापिस पलटना चाहते हैं मगर कोई मददगार नहीं मिलता।

ख़ुद में इतनी जुस्तुजू महसूस नहीं कर पाते के वो क़ादयानी चंगुल से निकल सके क्योकि इस फ़िरक़ा की तरफ़ से तशद्दुद या अपने क़ादयानी रिश्तेदारों से तकलीफ़ का सामना हो सकता है। एक अहम काम जो समझ में आ रहा है, वो मख़सूस मुसलमान तंज़ीम ही कर सकती है उसकी तश्कील यह होगी के जहां जहां क़ादयानी उरूज पर है वहाँ हमारी भी एक मख़सूस टीम हो जिस में मुख़्तलिफ़ उलूम और फ़ुनून के माहिरीन शामिल हो 

और मुख़्तलिफ़ महाज़ पर काम की नौ’इय्यत (हालत/कैफ़ियत) तक़सीम कर के रद्दे क़ादयानियत पर मुख़लिसाना कोशिश करें। इस सिलसिले में साहिब-ए-सरवत (दौलतमंद) भी आगे आए और इस नौ’इय्यत (कैफ़ियत) का काम शुरू करवाए या जहां काम किया जा रहा है उसको स्पोर्ट करें। यह काम आप के हक़ में और उस में शामिल तमाम अफ़राद के हक़ में सद्क़ा जारिया होगा।

अल्लाह से दुआ है कि हमारे ईमान और अक़ीदा की हिफ़ाज़त फ़रमाए और हमें हक़ और इबताल बातिल की तौफ़ीक़ मरहमत (नवाज़िश) फ़रमाए। आमीन।

 

 

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Qadiyaniyat Ke Badhte Qadam Aur Hamari Zimmedariyan

 

Tehreer: Shaikh Maqbool Ahmad Salafi Hafizahullaah

JEDDAH DA’WAH CENTER HAIYYUS SALAMAH,SAUDI ARABIA

Romanised by : Khadija Muhammadi

Aqeeda e Khatm e Nubuwwat, Aqaaid Ke Baab Me Ek Aham Tareen Aqeedah Hai. Ahd e Rasoolullah ﷺ Se Hi Is Aqeede Ki Hifazat Ki Gai Hai Aur Aaj Tak Balke Yah Keh Len Ki Qayamat Tak Manhaj E Salaf Par Chalne Wale Kama Haqqahu (Jaisa Ki Us Ka Haqq Hai) Uski Hifazat Karte Rahenge Is Silsile Me Munazir E Islaam Molana Sanaullaah Amratsari Rahimahullah Ka Naam Hamesha Sar e Fehrist Rahega. Islam Allah Ka Nizaam Aur Uske Dastoor Ka Naam Hai Is Liye Allah Ke Dushman Hamesha Se Islam Ke Khilaf Saazish Karte Rahe Magar Islam Hamesha Phalta Phulta Raha Aur Zamane Me Phailta Raha Allah Ne Is Deen Ko Tamaam Deen E Batila Par Gaalib Karne Ka Wada Kar Liya Hai Aur In-Sha-Allah Yah Ho Kar Rahega Chaahe Kuffaar Ki Sari Khudaai Iske Khilaaf Aapas Me Dost Aur Madadgaar Hi Kiun Na Ban Jaayen.

Nubuwwat Ke Naam Par Jis Tarah Ahd E Risalat Me Jhoothe Dawedaar Paida Hote Rahe Aaj Bhi Naye Rang Roop Le Kar Zaahir Ho Rahe Hain. Unke Aham Maqaasid Me Musalmano Ko Islam Se Door Karna, Ghairon Ko Islam Me Dakhil Hone Se Rokna Aur Duniya Waalon Par Islam Ki Image Bigaad Kar Paish Karna Hai. Is Ke Bil-Muqabil Ayse Nazariyat Paish Karna Hai Jis Se Zahir Ho Ke Aman Islam Me Nahi Hai Balke Hamare Paas Hai Ya Dusre Alfaaz Me Aysa Samjhen Ke Islam Woh Nahi Jo Purane Khayal Ke Daqyanoos Musalmaan Paish Kar Rahe Hain Balke Roshan Khayali, Bain al Aqwaami Aman Aur Salamti, Aalami Marasim Aur Rawabit Aur Asal Islam To Hamare Paas Hai. Yahi Wajah Thi Ke Istimaari Quwwat Ke Liye Hindustaan Me Jab Musalmano Ko Jihaad Se Rokne Ka Masla Aaya To Mirza Gulaam Ahmad Jaisa Wafadar Ghulaam Mila. Isne Angrez Wafadari Me Na Sirf Jihaad Ka Inkaar Kiya Balke Dhire Dhire Nubuwwat Ka Dawah Bhi Kar Betha. Mirza Gulaam Ahmad Kal Angrezon Ki Zaroorat Tha Aur Aaj Musalmano Ke Liye Bada Challenge Ban Kar Saamne Aa Gaya Hai. Molana Sanaullaah Amratsari Rahimahullah Se Mubahala Ke Bad Mirza Badtareen Maut Mar To Gaya Magar Piche Chhodi Gai Darjano Najis Kitaab Aur Paleed Aaqaaon Ki Madad Se Mirzaai Firqa Zinda Raha Jis Ke Manne Wale Hindustaan Aur Pakistaan Me Ziyada Tadad Me Aur Choti Choti Toliyo Me Duniya Ke Aksar Hisse Me Maujud Hain. Yah Arab Mamalik Samet Aqriqa Aur Magribi Mamalik Me Bhi Paaye Jaate Hain Yahan Tak Ke Israail Se Gehre Rawabit Hain. Jis Tarah Hindustaan Me Angregi Sarkaar Ne Is Shajra E Khabisa Ki Aabyaari Ki Usi Tarah Aaj Bhi Kar Rahi Hai. Israail Ki Taraf Se Use Bada Fund Milta Hai Jis Ke Zariye Yah Apni Dawati Missionaries, Rifaahi Idaare, Taalimi Center Chala Rahe Hain. Unhi Paison Ko Muballigheen Aur Qaadyani Kutub Aur Unki Nashar o Isha’at Par Kharch Kiya Jaata Hai. Pakistan Me Rabavah, Hindustaan Me Qadiyan Aur Israail Me Heefa Qadiyano Ka Markaz Hai. Israail Ki Tarah Hind Ki Sanghi Tanzeem RSS Se Bade Gehre Talluqaat Aur Ek Dusre Ke Dast Aur Bazu Hain. RSS Ki Zaili Sanghi Tanzeem ‘Rashtriya Muslim Manch” Me Asal Kirdaar Musalmano Ka Nahi Qadiyanon Ka Hai. Bilaakhir Hamare Samne Jo Nataij Hai Woh Nihayat Hi Afsosnaak Hai. Din Badin Yah Firqa Apni Jade Mazboot Karta Chala Raha Hai Aur ISLAAM Ke Raste Me Aur Aqeedah Khatme Nabuwat Ke Baab Me Hamare Liye Badi Mushkilaat Paida Kar Raha Hai. Sab Se Badi Fikar Mandi To Yah Hai Ke Aaj Tak Jitne Bhi Log Iska Aala Bane Ya Ban Rahe Hai Unki Aksariyat Musalmano Ki Hai. Yah Firqa Musalmano Ko Gumraah Kar Ke Qaadyani Bana Raha Hai Kuy Ke Yah Khud Ko Musalman Zaahir Karta Hai,Apna Naam Ahmadi Ya Ahmadi Musalman Ya Ahmadiya Muslim Community Batlata Hai. Jis Mulk Me Bhi Yah Firqa Maujud Hai Us Mulk Me Hukoomati Taur Par Khud Ko Musalman Ki List Me Dakhil Karwane Ki Koshish Karta Hai. HINDUSTAAN Me Muslim Prosnal Low Board Me Shia Ki Bhi Rukniyat Hai, RSS Ke Zair E Asar Maqaamaat Par Waqaf Board Aur Haj Commety Ke Asal Zimma Daar Hote Hai Jab Ke Angrezi Daur E Hukoomat Me Mirza Gulaam AHMAD Ne Khud Ko Musalmano Se Alag Ek Mustaqil Firqa Ki Haisiyat Se Khud Ko Mutaruf Karwaya Tha Lekin Aazadi Ke Baad Congress Party Muslim Dushmani Me 2011 Ki Pehli Baar Mardoom Shumaari Ke Waqt Musalmano Ke Sath Shumaar Me Laai Aur Bar Waqt To BJP Hukoomat Hai Jis Ke Manshoor Me Muslim Dushmani Ke Alawah Kuch Hai Hi Nahi. Pakistaan Me Qadiyani Apna Qadam Mazboot Aur Hukoomati Satah Par Apni Pakad Bana Liya Tha Is Wajah Se Waha Bataur E Aain Gair Muslim Aqalliyat Qaraar Dene Me Kaafi Waqt Lag Raha Hai,1953 Ki Tehreek Khatam E Nabuwat Me Hazaro Musalmano Ne Jaam E Shahadat Nosh Kiya Fir Bhi Qadyaani Gair Muslim Hone Ka Mutalba Pura Na Ho Saka Taham Qadiyani Wazeer E Kharja Zafrulllaah Khan Ki Bartarafi Ho Gai Jis Ki Wajah Se Rabavah Me Ek Badi Araazi Qaadyani Markaz Ke Liye Alaat Ki Gai Thi. 70,000 Se Ziyada Ki Aabadi Wale City Rabavah Ki 97% Aabadi Qadyaniyo Par Muheet Hai Aur Is Jagah Ka Istemaal Qadiyaniyat Ki Tablig Me Bade Shadd Aur Mudd Ke Sath Kiya Ja Raha Hai. Aazaad Kashmir Ki Assembly 1973 Me Qadyaniyo Ko Gair Muslim Qaraar Diya Jab Ke April 1974 Me Rabta Aalam E Islaami Ne Makka Mukarrama Me Ek Bada Ijlaas Munaqid Kiya Jis Me Duniya Fir Se Muslim Tanzime Aur Ulmae Kiraam Ne Shirkat Ki Aur Is Ijlaas Me Mirzaai Ko Gair Muslim Qaraar De Kar Tamam Musalmano Se Is Ka Boycot Karne Us Se Mutanbba Rehne Aur Uska Dat Kar Muqabla Karne Ki Apeel Ki Isi Saal 7 September Ko Musalmano Ki Mushtarka Koshish Rang Laai Aur Pakistan Me Zulfiqaar Ali Bhattu Ke Ahad E Hukoomat Me Taweel Bahas Aur Munazara Ke Baad Qadyani Ko Dastoor Taur Par Gair Muslim Aqalliyat Qaraar De Kar Taarikh Raqam Ki Gai. Waha Awaami Taur Par Aaj Bhi 7 September Ko Yaum E Khatam E Nabuwat Ke Taur Par Manaya Jata Hai.

Tamhidi Baate Kuch Lambi Ho Gai Ab Aate Hai Asal Maqsad Ki Taraf Ke Mirzaai Taula Kis Tarah Apna Qadam Badha Aur Jama Raha Hai Use Samjhne Ki Zaroorat Hai Taaki Uska Badhta Qadam Roka Ja Sake Aur Fitna Irtidaad Ka Sadde Baab Kiya Ja Sake. Yah Kaam Musalmano Ke Kisi Makhsus Fard Ya Makhsus Tanzeem Ka Nahi Hai Balke Har Muvahid Ka Hai Tamam Musalmano Ka Hai Bilkhusus Ba-Asar Muslim Shakhsiyat, Zair E Qiyadat Muslim Hukmaraan Aur Aalami Paimane Par Asar Aur Nufooz Wali Muslim Tanzeemat Ka Hai.

*Qadyani Firqa Awaam Me Khud Ko Musalman Mushtahir Karta Hai Aur Sarkari Taur Par Musalman Ka Khitaab Pane Ke Liye Siyasi Hatkande Apnata Hai Zara Sa Kahi Mauqah Mila Qadyani Media Ko Barue Kaar Late Hue Duniya Bhar Me Iska Parchaar Karta Hai. Iski Ek Badi Misaal 2017 Me Abu Zabi Me Munaqid Hone Wale Bainul Aqwaami Confrance Se Le Le. Yah Confrance Shaikh Abdullaah Bin Baya Ki Qayadat Me

“تعزيز السلم فى المجتمع المسلم”

Ke Topic Se Hui Isme Na Jane Kaise Do Qadyani Bhi Sharik Ho Gae Unhone Usme Shirkat Ki Video Banai Aur Use Qadyani Channel Rabavah Times Ko Bhej Diya Jis Ne Mukhtalif Tariqah Se Kai Din Tak Namak Mirch Laga Kar Is Khair Ki Ishaat Ki,Logo Me Galat Fehmiya Phailata Raha Yaha Tak Ke Ek Shia Channel Ne Keh Diya Ke Saudi Mufti Ne Qadyani Ko Muslim Qaraar De Diya. Is Waqia Me Hamare Liye Nasihat Yah Hai Ke Apni Makhsus Majalis Se Unhe Door Rakhe Yah Kisi Bhi Bhes Me Bhi Ho Sakte Hai Aur Hamare Hi Programme Ko Hamare Khilaaf Morcha Bana Sakte Hai.

*Sarkari Ahdo Ki Husool Yaabi Aham Tareen Hatkandah Hai Qayadat Milne Ke Baad Zaila Qatarah Samaj Me Gholna Shuru Kar Deta Hai Jis Ke Zair E Asar Kamzor Imaan Walo Ka Dil Qadiyaniyat Ki Waba Se Bimaar Ho Jata Hai. Muhammad Zafrullaah Khan Ke Daur Me Pakistani Hukoomat Ki Taraf Se Rabavah Nami Jagah Ki Farahami Uski Zindah Misaal Hai. 1034 Ekad Par Mushtamil Yah Jagah Aaj Qadiyani Ki Tablig Ka Markaz Hai Aur Qadyaniyo Ka City Kehlata Hai. Yaha Qadiyani Ki Isha’at Ka Kon Sa Waseela Maujud Nahi Hai. Talimi Idaare, Tabligi Maraakiz,Ibaadat Gaahe,Qadyani Media Ka Behtar Intizaam Hai Aur Yah Duniya Bhar Ke Qadyaniyo Ki Tavjjoh Ka Na Sirf Markaz Hai Balke Uske Salana Ijtima Me Hindupaak Ke Alawah Tamam Mamalik Se Qadyani Sharik Hote Hai. Maazi Ki Is Galati Se Hame Sabaq Lena Hai Aur Aaindah Yah Mansuba Banana Hai Ke Hukoomat Ke Ayse Ohdo Par Kisi Qadyani Ko Bardasht Na Kiya Jaae Jis Se Islaam Aur Musalmano Ko Khatrah Laahiq Ho.

*Intishaar Aur Balvah Ke Mawaqe Se Faidah Uthana Bhi Qadyani Hatkandah Hai Ayse Halat Me Yah Log Badi Ayyari Se Apne Ifqaar Aur Khayalat Phailaane Ki Koshish Karte Hai Logo Ka Zahan Intishaar Me Mubtala Hota Hai Aur Qadyani Apne Mishan Ms Masroof Hote Hai Taaki Ayse Halat Me Koi Un Par Shak Bhi Na Kar Sake.

* Aap Yah Samjhe Ke Har Qadyani Muballig Hai,Student Ke Bhes Me, Rozgaar Ki Talash Me,Bimaar Ki Shakal Me, Akhbaari Numaindah Hone Ke Bahane Se Yani Woh Jis Roop Me Bhi Ho Ek Muballig Hai,Hame Har Qadyani Se Bachna Hai Aur Apna Imaan Bachana Hai Aur Dusro Ko Uska Aala Kaar Banne Se Rokna Hai.

* Qadyaani Ka Khatarnaak Jaal Jis Me Bade Bade Phans Jate Hai Kalmah Ki Tablig,Naram Akhlaaq Ka Muzahira,Shaaire Islaam Ka Istemaal Aur Khud Ko Musalman Batlana Hai. Jab Koi Qadyani Tablig Kare Ga To Kahe Ga Ham Bhi Musalman Hai.

لا إله إلا الله محمد رسول الله

Ki Tablig Karte Hai Masjid Me Namaz Ada Karte Hai Aur Mirza Gulaam Ahmad Ko Sirf Ek Muballig Aur Mujaddid Mante Hai JAB Ke Mirza Ko Apna Nabi Manta Hai Aur Kalma Me Muhammad Se Muraad Mirza Hi Leta Hai Is Tarah Shuru Me Mitha Zahar Denge Fir Maut Ke Ghaat Utaar Denge is Liye Koi Musalmaan Qadyani Se Dhoka Na Khaae Na Kalma Se,Na Uske Sha’air Se Aur Na Hi Achche Akhlaaq Se.

* Ek Bade Bhayanak Fareb Ka Pata Chala Hai Ke Qadyaaniyat Ki Tashheer Me ADIS Se Bhi Kaam Liya Jata Hai. Iska Tariqah Kaar Yah Hai Ke Dosti Ke Naam Par Ladkiyo Ke Mobile No Akhbaarat Aur Jaraaid Ke Zariya Mashhoor Kar Diye Jate Hai Yah Ladkiya Dosti Ke Bahane Ladko Ko Zinakari Ke Giroh Me Shamil Karti Hai Jo AIDS Wali Hoti Hai Jab Ladko Ko AIDS Ka Rog Lag Jata Hai To Us Groh Ke Liye Kaam Karna Majburi Ban Jati Hai. Qadiyaniyat Ki Tashheer Me Ladkiyo Ka Istemaal Kisi Bhi Tarah Ho Sakta Hai Maslan Rozgaar,Shadi,Taalim Mamlaat,Tijarat Wagairah.

*Qaadyani Ki Taraf Se Mukhtalif Qisam Ke Muharrif Tarjumah Aur Tafseer Maujood Hai 80 Se Ziyada Language Me Qadyani Tarajim Aur 200 Se Zaid Mumalik Me Unki Tauzee Is Firqa Ke Badhte Waisee Qadam Ki Taraf Isharah Kinaa Hai. Ab To Android Mobile Me Qadyaniyo Ki Taraf Se Mukhtalif Zabano Me Mukhtalif Qisam Ke Quraani App Bhi Daal Diye Gae Hai Ayse Bhi App Hai Jin Ki Madad Se 24 Hours Unki Mazhabi Nashriyat Sun Sakte Hai. Ab To Qadyaani Ghar Ghar Aur Har Insaan Tak Pohnch Gaya Ayse Me Hame Kya Karna Hai Sochne Ka Maqaam Hai? Jante Hai Social Media Yah Qaadyani Group Aur Page Chalane Wale Salary Par Rakhe Gae Hai.

* Ek Hatkandah Jo Har Baatil Mazhab Ka Hai, Maadiyat Ka Dhoka, Usne Bhi Apna Rakha Hai. Is Hatkandah Se Nakhawanda Aur Majboor Aur Hajatmand Ko Taalim, Nokri, Makaan,Ilaaj,Paisa Kharji Mamalik Ka Safar Aur Dusre Mumalik Ki Nationality Ki Khidmat Muhaiya Kar Ke Badle Me Deen Ka Saudah Karta Hai.

*Hindustaan Me RSS Aur Hindutwo Ke Mansubo Ki Takmil Me Shamil Aur Musalmano Ke Khilaaf Har Qisam Ke Mawaad Faraham Karne Wala Khatarnaak Ajent Qaadyani Hai Aap Ko Hairat Hogi Gair Muslim Ko Islaami Taalimat Me Shak Karne Un Par Aitraaz Karne Aur Mazaaq Udane Ka Mauqah Kaise Milta Hai? Yahi Gaddar Hai Jo Hamari Bate Un Tak Pohnchate Hai Aur Qur’aan Aur Hadees Se Mawaad Talash Talash Kar Dete Hai Qur’aan Se Jihaad Ki Aayat Nikalne Ka Shosha Dete Hai. Qaadyani Ka Yah Hathiyaar Na Sirf Hindustaan Me Chalaya Ja Raha Hai Balke Har Jagah Use Aazmaya Ja Raha Hai. Khud Ko Sunni Musalmaan Kehne Wala Naapak Insaan Taariq Fatah Ka Kirdaar Aap Ke Samne Hai.

Duniya Me Qaadyaniyat Ke Badhte Wasee Qadam Aur Unke Asbaab Aap Ke Samne Hai,Ek Musalman Hone Ke Tai Us Fitna Ka Sadde Baab Aur Aqeedah Khatm E Nabuwat Ka Tahffuz Har Insaan Bashar Ki Pehli Zimma Daari Hai. Aaiye Aaj Azam E Musammam Karte Hai Ke Ham Me Se Jo Muharrir Hai Woh Tehreer Se,Jo Muqarrir Hai Woh Taqreer Se Jo Ba Asar Hai Woh Apne Asar Se,Jo Sahibe Iqtidaar Hai Woh Quwwat Aur Iqtidaar Se Aur Jo Maaldaar Hai Apne Maal Se Kalma E Tauheed Ko Sarbulandi Aur Aqeedah Khatme Nabuwat Ka Tahffuz Karte Hue Fitna E Irtidaad Ko Roke Ga. Ham Me Se Har Padha Likha Jis Ke Gird Qaadyani Ko Islaam Me Dakhil Karne Ki Khaalis Niyyat Kare,Madad Karne Wala Allaah Hai. Aam Aadmi Kam Az Kam Is Zimma Daari Ka Ahsaas Kare Ke Jab Bhi Use Kisi Qaadyani Makar Aur Fareb Ki Khabar Ho Foran Muslim Shakhsiyat Ko Khabar Kare. Itna To Har Aadmi Kar Hi Sakta Hai Ke Apne Ghar Me Qadyani Ilhaad Aur Kufar Aur Us Ki Chaal Baziyo Se Ba Khabar Kare Jis Ka Faidah Yah Hoga Ke Aap Ke Ghar Ka Muslim Is Firqa Ka Aala E Kaar Banne Se Bach Sake Ga. Gufat Aur Shaneed Se Maloom Hua Hai Ke Bahut Se Woh Musalman Jo Kisi Majburi Ke Tahat Qadyani Ka Shikaar Ho Gae Hai Aur Unhe Apni Galati Ka Ahsaas Ho Gaya Hai Woh Wapis Palatna Chahte Hai Magar Koi Madadgaar Nahi Milta Khud Me Itni Jasarat Mehsus Nahi Kar Paate Ke Woh Qaadyani Changul Se Nikal Sake Kuy Ke Is Firqa Ki Taraf Se Tashaddud Ya Apne Qadyani Rishte Daro Se Taklif Ka Samna Ho Sakta Hai. Ek Aham Kaam Jo Samjh Me Aa Raha Hai,Woh Makhsus Muslim Tanzeem Hi Kar Sakti Hai Uski Tashkil Yah Hogi Ke Jaha Jaha Qaadyani Urooj Par Hai Waha Hamari Bhi Ek Makhsus Team Ho Jis Me Mukhtalif Uloom Aur Funoon Ke Maahireen Shaamil Ho Aur Mukhtalif Mahaaz Par Kaam Ki Nauiyat Taqseem Kar Ke Radde Qaadyaniyat Par Mukhlisana Koshish Kare. Is Silsile Me Sahab E Sarwat Bhi Aage Aae Aur Is Nauiyat Ka Kaam Shuru Karwaae Ya Jaha Kaam Kiya Ja Raha Hai Iska Sport Kare. Yah Kaam Aap Ke Haq Me Aur Usme Shamil Tamam Afraad Ke Haq Me Sadqah Jariyah Hoga.

Allaah Se Dua Hai Ke Hamare Imaan Aur Aqeedah Ki Hifazat Farmaae Aur Hame Haq Aur Abtaale Baatil Ki Taufiq Marhamat Farmaae. Aameen

 

 

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